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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
( पदार्थ )
( सुरासुरा) सुर और असुर देवता ( जिणं ) जिनभगवानको ( दिऊण ) चन्दन कर ( थोऊण ) वाणी से स्तुति कर (तो) अनंतर ( तिगुणमेव ) तीनही ( पयाहिणं ) प्रदक्षिणा (कर) (य) और ( पुणो ) फिर ( जिणं) जिन भगवान को ( पणमिऊण) प्रणामकर ( पमुइआ ) अत्यन्त हर्षित होकर ( तो ) अनंतर ( सभवणाई ) स्वभवनको ( गया ) गए ।
( भावार्थ )
सुर और असुर देवता जिन भगवान को वंदन कर और वाणी से स्तुति कर अनंतर तीन प्रदक्षिणा कर अपने अपने घर जानेके समय फिर भगवानको प्रजाप कर अत्यन्त हर्षित हो अपने अपने घर गए ।
(क्षिप्तकंछंदः )
॥ खित्तयं ॥
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रागदेस भयमोह
तं महामुणिमपिपंजली वजिअं । देवदाणव नरिंदवंदिअं संति मुत्तम महातवं नमे ।। २५ ।।