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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
(पदार्थ) ( पुरिसा ) हे भव्यजिवो ( जइ ) यदि (दुक्खवारण) दुःखोंकानाश ( जइअ ) और यदि (सुक्खकारणं) सुख का कारण (विमग्गह) शोधनकरना चाहतेहो तो (अजिअं) अजितनाथ स्वामीको ( च ) और ( संति) शान्तिनाथ स्वामीको ( भावओ ) भक्तिसे ( सरणं ) शरण ( पवझहा ) जाओ ( क्योंकि वे दोनोंही ) ( अभयकरे ) अभयके करनेवाले हैं।
(भावार्थ) हे भव्यजीवो यदि तुम अपने दुःखोंका नाश और सुखकीप्राप्ति चाहतेहो तो अजितनाथ स्वाभको और शान्तिनाथस्वामीको भक्तिपूर्वक शरण जाओ क्योंकि वे दोनोंही अभयके करनेवाले हैं।
(संगतकंछंदः)
( संगययं ) अरइरइतिमिरविरहिअ मुवरयजरमरण । सुरअसुरगरुलभुवगवइपयय पणिवइअं ॥ अजिअमहमविअसुनयनयनिउणमभयकरं । सरणमुवसरिअभुविदिविज महिअं सययमुवणमे ॥७॥