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= (सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान) =
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LATASANEARN
म्व. वीरेन्द्रकुमार बालक होने पर भी सभी भाइयों में बुद्धिमान स्नेही सरलपरिणामी मृदुभाषी अत्यन्त सुन्दर उदारहृदय भाग्यशाली और होनहार थे। उनकी स्मृति के लिये ही यह पूजनग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है जो कि स्वय मगलरूप है और इसके अनुसार पूजन में प्रवृत्ति करने वालों के अनन्त पापका विध्वस एव पुण्यराशि का संचय करने वाला है।
___ प्रस्तुत विधान की प्रेस कापी एक ही प्रति पर से की गई है जो कि इन्दौर के दि. जैन उदासीनाश्रम में स्थित अमर ग्रन्थालय से हमको प्राप्त हो सकी थी। इन्दौर के अन्य मन्दिरों में भी इसकी प्रतियां हैं परन्तु वे सब अमर ग्रन्थालय की पुस्तक पर से ही लिखी गई है। जिसपर से हमने प्रेस कापी की है, यद्यपि वह जगह २ शुद्ध भी कीगई है, फिर भी पर्याप्त अशुद्ध है । हमसे जहांतक भी हो सका है उसको शुद्ध करके ही प्रेस कापी करने का प्रयत्न किया है फिर भी इसमें जो कुछ अशुद्धियां रहगई है या हमसे ठीक नहीं हो सकी है हम उनके लिये पाठकों से क्षमा चाहते है और विद्वानों से प्रार्थना करते है कि वे उनको शुद्ध एवं ठीक करलेने की कृपा करें ।
KANE
पाठक महानुभाव विधान को पढकर स्वय समझ सकेंगे कि वह किसी एक विद्वान् की सम्पूर्ण कृति न होकर एक संग्रहीत पाठ है। जिसके कि कर्ता भट्टारक थी शुभचन्द्रजी है।