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= (लिङ्क आकृत ही
विमान) -
सामने देखते २ ता. २६-६-४१ की काल रात्रि में इन्द्रभवन को सदाके लिये सूना कर दिया । दादी रोती रहगई, बाबा हताश होकर हा हा करते ही रह गये, माता कुछ क्षण तक निश्चेष्ट और स्तब्ध रही और उसके बाद मूर्छित होकर गिरगई, पिता दहाड मारकर गिरगये और गुणों को याद कर २ के रोते ही रह गये, भाई बन्धु और दूसर सभी स्नेही किकर्तव्य विमूढ हो गये । मतलब यह कि यह मर्त्यलोक का इन्द्रभवन क्षणभर में शोक का सागर बन गया और हाहाकार से सर्वत्र क्षुब्ध होगया । परन्तु क्या किया जा सकता था। बाल युवा वृद्ध. सरोग नीरोग, राजा रक, सज्जन दुर्जन आदि सभी को समान दृष्टि से देखने वाले अर्थतः विषमदृष्टि किन्तु नाम से समदृष्टि-यमराज की वक्र दृष्टि मे रच मात्र.भी अंतर डाल सकने वाला उपाय, क्या अनन्तबल के धारक, सम्पूर्ण नरों सुरों और असुरों के द्वारा बन्ध, त्रिलोकी पति तीर्थकर भगवान् भी प्राप्त कर सके है ' नही । अतएव इस अवसरपर भी सबको हाथ मलते ही रह जाना पड़ा और वह इन्द्रभवन की कली असमय-अत्यल्प काल मे ही सदा के लिये मुरझागई । जिनको जिस तरह भी मालुम हुआ उन सभीने तार चिठ्ठी या समाचार पत्रों के द्वारा कुटुम्बियोंके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए स्वर्गीय आत्मा की सद्गति के लिये सद्भावना प्रकट की । बहुत से सज्जनाने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर और बहुतसोने परोक्षरूप से तारों या चिट्ठियों के द्वारा शोकाश्रुओ को प्रवाहित किया । परन्तु इससे क्या हो सकता था । घटित दुर्घटना का विघटन तो असभव ही था ।
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