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श्री सिद्धचक्र विधान
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अन्तराय भये उत्सव बढे,
बाल चन्द्र समान कला चढे । वृद्धि तप की ऋद्धि लहैं यती,
सिद्ध नमत सुख हो अति ॥२७॥ ___ॐ ह्रीं अहँ तपोवृद्धिरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥२७॥ सिंह क्रीडित आदि विधानते, ... नित बढावत तप विधि मानतें। महामुनीश्वर तप परकाशतें, - नमूं मुक्ति भये जगवासतें ॥२८॥ . ॐ ह्रीं अहँ महातपोरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥२८॥
शिखिरगिरि ग्रीषम, हिम सरतटैं, . तरु निकट पावस निजपद रटैं। घोर परिषह करि नाहीं हटैं,
भये सिद्ध नमत हम दुःख कटैं॥२९॥ ___ ॐ ह्रीं अर्ह घोरतपोरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२९॥ महाभयङ्कर निमित मिलै जहाँ,
निर्विकार यती तिष्ठं तहाँ। महा पराक्रम गुण की खान हैं,
नमो सिद्ध जगत सुखदान हैं ॥३०॥ ॐ ह्रीं अहँ घोरगुणरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३०॥ सघन गुण की रास महायती,
रत्नराशि समान दिपैं अती।