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श्री सिद्धचक्र विधान
परिमाणनजानत हैं तिनको, छिनरोगनआवत हैं जिनको। अप्रमेय महागुण धारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
___ॐ ह्रीं अर्ह अप्रेयधर्माय नमः अर्घ्यं ॥६॥ गुणपर्य प्रमाणदशा नत ही, निजरूपन छांडत हैं कितही। जिन वैन प्रमाण सुधारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
ॐ ह्रीं अहँ अगुरुलघुत्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥७॥ . जितने कछु हैं परिणाम विर्षे, सबचित्त स्वरूप सुजान तिसैं। मुख चेतनता गुण धारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
ॐ ह्रीं अहँ चेतनत्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥८॥ निज अंग-उपांग शरीर नहीं, जिन रंग-प्रसंग सु तीर नहीं। नभसार अमूरति धारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
ॐ ह्रीं अहँ अमूर्तित्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥९॥ परको नकदाचित धर्म गहैं, निज-धर्म स्वरूपन छांडत हैं। अति उत्तम धर्म सुधारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
ॐ ह्रीं अहँ सम्यक्त्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥१०॥ जितने कछु हैं परिणाम विर्षे, सब ज्ञानस्वरूपसुजान तिसैं। सुख ज्ञानमई गुण धारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
___ ॐ ह्रीं अहँ ज्ञानधर्माय नमः अर्घ्यं ॥११॥ चिन्मय चिन्मूरति जीवसही, अति पूरणता विन भेद कही। निज जीव सुभाव सुधारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं।
ॐ ह्रीं अहँ जीवत्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥१२॥