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श्री सिद्धचक्र विधान
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तुमारी शरण तिहुँकाला, करन जग जीव प्रतिपाला। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया॥
- ॐ ह्रीं पाठकत्रिकालशरणाय नमः अध्यं ॥३८४॥ शरण अनिवार सुखदाई, प्रगट सिद्धान्त में गाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकत्रिमंगलशरणाय नमः अध्यं ॥३८५॥ लोक में धर्म विख्याता, सो तुमही में है सुखसाता। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया॥ . ॐ ह्रीं पाठकलोकशरणाय नमः अध्यं ॥३८६॥ जोग बिन आश्रव नाहीं, भये निर आश्रवा ताही। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
. ॐ ह्रीं पाठकआश्रववेदाय नमः अयं ॥३८॥ आश्रव करम का खोना, कार्य था आप का होना। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकआश्रवविनाशाय नमः अयं ॥३८८॥ तत्त्व निर्बाध उपदेशा, विनाशे कर्म परवेशा। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। 1. ॐ हीं पाठकआश्रवोपदेशछेदकाय नमः अध्यं ॥३८९॥ प्रकृति सब कर्म की चूरी, भाव मल नाश दुःख पूरी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ... ॐ ह्रीं पाठकबन्धमुक्ताय नमः अध्यं ॥३९०॥ न फिर संसार अवतारा, बन्ध विधि अन्त कर डारा। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
- ॐ ह्रीं पाठकबन्धान्तकाय नमः अयं ॥३९१॥