Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 334
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [३१७ जितने शुभ लक्षण कहे, तुममें हैं एकत्र। तुमको बन्दू भावसों, हरो पाप सर्वत्र॥ ___ॐ ह्रीं अहँ चतुरशीतिलक्षणाय नमः अर्घ्यं ॥९२८॥ तुम लक्षण सूक्षम महा, इन्द्रिय विषय अतीत। वचन अगोचर गुण धरो, निगुन कहैं सुनीत॥ ॐ ह्रीं अहँ अगुणाय नमः अर्घ्यं ॥९२९ ॥ अगुरु लघु पर्याय के, भेद अनन्तानन्त । गुण अनन्त परिणामकरि, नित्य नमें तुम सन्त॥ . ॐ ह्रीं अहँ अनन्तानन्तपर्याय नमः अर्घ्यं ॥९३०॥ . राग-द्वेष के नाशते, नहीं पूर्व संस्कार। निज सुभाव में थिर रहैं, अन्य वासना टार॥ ... ॐ ह्रीं अहँ पूर्वसंस्कारनाशकाय नमः अर्घ्यं ॥९३१॥ गुण चतुष्ट में वृद्धता, भई अनन्तानन्त । तुमसम और न जगत में, सदा रहो जयवन्त॥ ___ॐ ह्रीं अहँ अनन्तचतुष्टयवृद्धाय नमः अर्घ्यं ॥९३२ ॥ आर्ष कथित उत्तम वचन, धर्म मार्ग अरहन्त। सो सब नाम कहो तुम्हीं, शिवमारग के सन्त॥ _ॐ ह्रीं अहँ प्रियवचना नमः अर्घ्यं ॥९३३ ॥ महाबुद्धि के धाम हो, सूक्षम शुद्ध अवाच्य। चार ज्ञान नहिं गम्य हो, वस्तुरूप सो साच्य॥ . ॐ ह्रीं अहँ नीरवचनीयाय नमः अर्घ्यं ॥९३४॥ सूक्षमतें सूक्षम वि., तुमको है परवेश। आपै सूक्षमरूप हो, राजत निज परदेश॥ . ॐ ह्रीं अर्ह अणीयशे नमः अर्घ्यं ॥९३५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362