Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 361
________________ ३४४] श्री सिद्धचक्र विधान वनरनशत्रु अग्निजलपर्वत विषधर पञ्चानन, मिटेंसकलभय कष्ट करेंजेसिद्धचक्रसुमिरन ।जय. मैनासुन्दरिकियो पाठयह पर्वअठाइनिमें, पतियुत सात शतककोढ़िनकागयाकुष्ठछिनमें।जय. कातिक फागुनसाढ आठ दिन सिद्धचक्र पूजा, करें शुद्ध भावोंसे मक्खन'लहँ न भवदूजा ।जय. . भजन . . . श्री सिद्धचक्र का पाठ करो दिन आठ, ठाठ से प्राणी, फल पायो मैना रानी ॥टेक॥ मैनासुन्दरी एक नारी थी, कोढ़ी पति लखि दुःखियारी थी। नहिं पड़े चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी ॥ फल.॥ जो पति का कष्ट मिटाऊँगी, तो उभयलोक सुख पाऊँगी। नहिं अजागलस्तनवत निष्फल जिन्दगानी॥ फल.॥ इक दिवस गई जिनमंदिर में, दर्शन करि अति हर्षी उर में। . . फिर लखे साधु निर्ग्रन्थ दिगम्बर ज्ञानी॥ फल.॥ बैठी मुनि को करि नमस्कार, निज निंदा करती बार-बार। भरि अश्रुनयन कही मुनिसों दुःखद कहानी॥ फल.॥ बोले मुनि पुत्री धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो। नहिं रहे कुष्ठ की तन में नाम निशानी॥ फल.॥ सुनि साधु वचन हर्षी मैना, नहिं होंय झूठ मुनि के बैना। करि के श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी॥ फल.॥ जब पर्व अठाई आया है, उत्सवयुत पाठ कराया है। सब के तन छिड़का यन्त्र न्हवन का पानी ॥ फल.॥ गन्धोदक छिड़कत वसुदिन में नहिं रहा कुष्ठ किंचित् तन में। भई सातशतक की काया स्वर्ण समानी॥ फल.॥ भव भोगि-भोगि योगेश भये, श्रीपाल कर्म हनि मोक्ष गये। दूजे भव मैना पावै शिव रजधानी ॥ फल.॥ जो पाठ करै मनवचतन से, वे छूटि जायें भवबन्धन से। .. - "मक्खन' मत करो विकल्प कहा जिनवानी॥ फल.॥ ॥ समाप्त॥

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