Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 332
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [३१५ बन्ध रहित सर्वस्व करि, निर्मल हो निर्लेप। शुद्ध सुवर्ण दिपै सदा, नहिं मोह मल लेप॥ ॐ ह्रीं अर्ह परमसंवराय नमः अर्घ्यं ॥९१२॥ मेघ पटल बिन सूर्य जिम, दीप्त अनन्त प्रताप। निरावर्ण तुम शुद्ध हो, पूजत मिट है पाप॥ ॐ ह्रीं अहं निरावर्णाय नमः अयं ॥९१३ ॥ कर्म अंश सब झर गिरे, रहो न एक लगार। परम शुद्धता धारकै, तिष्ठत ही अविकार ॥ ॐ ह्रीं अहँ परमनिर्जराय नमः अर्घ्यं ॥९१४॥ तेज प्रचण्ड प्रभाव है, उदय रूप परताप। अन्य कुदेव कुआरिया, जुगजुग धरत कलाप। ॐ ह्रीं अर्ह प्रज्वलितप्रभाय नमः अर्घ्यं ॥९१५॥ भये निरर्थक कर्म सब, शक्ति भई है हीन। तिनको जीति छिनक में, भये सुखी स्वाधीन। . ॐ ह्रीं अहँ समस्तकर्मक्षयजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९१६ ॥ कर्म प्रकृति को रोग सम, जानो हो क्षयकार। निज स्वरूप आनंद में, कहो विगार निहार॥ ___ॐ ह्रीं अहँ कर्मविस्फोटकाय नमः अर्घ्यं ॥९१७॥ हीन शक्ति परमाद को, आप कियो है अन्त। निज पुरुषारथ सुवीर्यसों, सुखी भए सुअनन्त ॥ ॐ ह्रीं अहँ अनन्तवीर्यजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९१८॥ एक रूप रस स्वाद में, निर आकुलित रहाय। विविधरूप रस पर निमित, ताको त्याग कराय॥ ॐ ह्रीं अहँ ऐकाकाररसास्वादाय नमः अर्घ्यं ॥९१९ ।।

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