Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 349
________________ ३३२] श्री सिद्धचक्र विधान जाप्य मन्त्र - ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा नमः॥१०८॥ इसके पीछे चौबीस तीर्थङ्कर पूजा अथवा सरस्वती पूजा करनी चाहिये फिर शांतिपाठ विसर्जन करके पाठ समाप्त करे। हवन विधि . . हवन के लिए किसी लम्बे-चौड़े स्थान में कुण्ड बनावे। वे इस प्रकार के हों--प्रथम तीर्थङ्कर कुण्ड एक अरनि (मुष्टि बन्धे हाथ को अरनि कहते हैं) लम्बा, इतना ही चौड़ा चौकोर हो और इतना ही गहरा हो। इसकी तीन कटनी हों--पहली ५ अंगुली की ऊँची चौड़ी, दूसरी ४ अंगुल की, तीसरी ३ अंगुल की हो। इस कुण्ड के दक्षिण की ओर त्रिकोण कुण्ड उसी प्रमाण से लम्बा, चौड़ा, गहरा हो तथा उत्तर की ओर गोल कुण्ड उतनी ही लम्बाई, चौडाई और गहराईवाला हो। प्रत्येक कुण्ड का एक दूसरे से अन्तर चार-चार अंगुल का होना चाहिये। इन कुण्डों के चारों ओर कटनियों पर ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं लिखना चाहिये। ये कण्ड कच्ची ईंटों से एक दिन पहले तैयार करा लेने चाहिये और इन्हें अच्छे सुन्दर रङ्गों से रंग देना चाहिये। भीतर का भाग पीली या सफेद मिट्टी से पोत देना चाहिये-- कुण्डों की तीन कटनियों पर चार-चार पतली खूटी गाड़ें या छोटे-छोटे गिलास रखें जिनमें कलावा (मौली) लपेटा जा सके। कलावा लपेटते समय यह मन्त्र बोलना चाहिये-- ॐ ह्रीं अहँ पञ्चवर्णसूत्रेण त्रान् वारान् वेष्टयामि। इस प्रकार एक खूटी से दूसरी खूटी और दूसरी खूटी से तीसरी तथा तीसरी से चौथी खूटी तक कलावा (मौली) लपेटे। कुण्डों के पास दक्षिण या पश्चिम में एक वेदी बनावे जैसे पाठ के मांडने के पास बनाई थी। उसमें सिद्धयन्त्र बिराजमान करें। वेदी

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