Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 348
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [३३१ ज्यूँ पंगु चढे गिरि, गूंग भरे सुर, अभुज सिन्धु तर कष्ट भरै । त्यों तुम थुति काम, महा लज ठाम, सु अन्त सन्त परिणाम करै॥ ॐ ह्रीं अहँ चतुर्विंशत्यधिकसहस्रगुणयुक्तसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्य निर्व. स्वाहा। इति पूर्णाऱ्या। दोहा तीन लोक चूडामणी, सदा रहो जयवन्त। विघ्नहरण मंगल करन, तु, नमें नित सन्त॥ . इत्याशीर्वादः। अथ पूर्ण आशीर्वादः . अडिल्ल छन्द पूरण मंगल रूप महा यह पाठ है, सरस सुरुचि सुखकार भक्ति की ठाठ है। शब्द अर्थ में चूक होय तो हो कहीं, थुति वाचक सब शब्द अर्थ यामें सही॥ जिन गुणकरण आरंभ हास्य को धाम है, वायसका नहिं सिन्धु उतीरण काम है। यै भक्तनि की रीति सनातन है यही, क्षमा करो भगवन्त शान्ति पूरण मही॥ इति पूर्णाशीर्वादः -- परिपुष्पाञ्जलि क्षिपेत्।। इति श्री सिद्धचक्र पाठ भाषा--कवि सन्तलालजी कृत समाप्त।

Loading...

Page Navigation
1 ... 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362