Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 336
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [३१९ उचित क्षमादिक अर्थ सब, सत्य सुन्यास सुलब्ध। तिन सबके स्वामी नमूं, पूरण सुखी सुअब्ध। ॐ ह्रीं अहँ उत्तमक्षमादिगुणाब्धिजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९४४ ॥ महा कठिन दुःशक्य हैं, यह संसार निकाश। तुम पायो पुरुषार्थ करि, लहो स्वलब्धि अवास॥ ॐ ह्रीं अर्ह पूज्यपादजिनाय नमः अयं ॥९४५॥ परमारथ निज गुण कहें, मोक्ष प्राप्ति में होय। स्वारथ इन्द्रिय जन्य है, सो तुम इनको खोय॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ परमार्थगुणनिधानाय नमः अर्घ्यं ॥९४६ ॥ पर निमित्त या भेद करि, या उपचरित कहाय। सो तुम में सब भय भए, मानो सुप्त कहाय॥ . ॐ ह्रीं अर्ह व्यवहारसुसुप्ताय नमः अर्घ्यं ॥९४७॥ स्वै पद में नित रमन है, अप्रमाद अधिकाय। निज गुण सदा प्रकाश है, अतुल बली नमूं पाय॥ ह्रीं अहँ अतिजागरूकाय नमः अर्घ्यं ॥९४८॥ सकल उपद्रव मिटि गये, जे थे पर के साथ। निर्भय सदा सुखी भये, बन्दूं नमि निज माथ॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ अतिसुस्थिताय नमः अर्घ्यं ॥९४९ ॥ कहै हुवे हो नेमसै, परमाराध्य अनादि। तुम महातमा जगत के, और कुदेव कुवादि। ____ॐ ह्रीं अहँ उदितोदितमाहात्म्याय नमः अर्घ्यं ॥९५०॥ तत्वज्ञान अनुकूल सब, शब्द प्रयोग विचार। तिसके तुम अध्याय हो, अर्थ प्रकाशनहार॥ ॐ ह्रीं अहँ तत्त्वज्ञानानुकूलजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९५१ ॥

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