SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१७३ तुमारी शरण तिहुँकाला, करन जग जीव प्रतिपाला। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया॥ - ॐ ह्रीं पाठकत्रिकालशरणाय नमः अध्यं ॥३८४॥ शरण अनिवार सुखदाई, प्रगट सिद्धान्त में गाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्रीं पाठकत्रिमंगलशरणाय नमः अध्यं ॥३८५॥ लोक में धर्म विख्याता, सो तुमही में है सुखसाता। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया॥ . ॐ ह्रीं पाठकलोकशरणाय नमः अध्यं ॥३८६॥ जोग बिन आश्रव नाहीं, भये निर आश्रवा ताही। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। . ॐ ह्रीं पाठकआश्रववेदाय नमः अयं ॥३८॥ आश्रव करम का खोना, कार्य था आप का होना। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्रीं पाठकआश्रवविनाशाय नमः अयं ॥३८८॥ तत्त्व निर्बाध उपदेशा, विनाशे कर्म परवेशा। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। 1. ॐ हीं पाठकआश्रवोपदेशछेदकाय नमः अध्यं ॥३८९॥ प्रकृति सब कर्म की चूरी, भाव मल नाश दुःख पूरी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ... ॐ ह्रीं पाठकबन्धमुक्ताय नमः अध्यं ॥३९०॥ न फिर संसार अवतारा, बन्ध विधि अन्त कर डारा। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। - ॐ ह्रीं पाठकबन्धान्तकाय नमः अयं ॥३९१॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy