SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४] श्री सिद्धचक्र विधान आश्रव कर्म दुःखदाई, रुके सम्वर ये सुखदाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठकसम्वराय नमः अर्घ्यं ॥ ३९२ ॥ सर्वथा जोग विनसाया, स्वसम्वर रूप दरशाया । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठकसम्वरस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९३ ॥ भाव में कलुषता नाहीं, भये सम्वर करण ताहीं । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठकसम्वरकरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९४ ॥ कुपरणति राग रूष नाशन, निरजरा रूप प्रतिभासन । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठकनिर्जरास्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९५ ॥ कामदेव दाह जग सारा, आप तिस भस्म कर डारा । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठककन्दर्पछेदकाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९६ ॥ चहूँ विधि बन्ध विधि चूरा, ये विस्फोटक कहो पूरा । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठककर्मविस्फोटकाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९७ ॥ दऊ विधि कर्म का खोना, सोई है मोक्ष का होना । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठकमोक्षाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९८ ॥ द्रव्य अर भाव मल टारा, नमूं शिवरूप सुखकारा । पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्रीं पाठकमोक्षस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥ ३९९॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy