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श्री सिद्धचक्र विधान
मोह भार को निवार, शुद्ध चेतना सुधार। येई वीर्यता अपार, लोक में प्रशंसकार॥ सूरि धर्म.॥
ॐ ह्रीं सूरिवीर्यलोकोत्तमेभ्यो नमः अयं ॥२१७॥ धर्म केवली महान, मोह अन्ध तेज भान। सप्त तत्त्व को बखानि, मोक्ष-मार्ग को विधान॥ सूरि धर्म.॥
ॐ ह्रीं सूरिकेवलधर्माय नमः अयं ॥२१८॥ . शील आदि पूर भेद, कर्म के कलाप छेद। आत्म-शक्ति को प्रकाश, शुद्ध चेतना विलास॥सूरि धर्म.॥
ॐ ह्रीं सूरितपेभ्यो नमः अयं ॥२१९॥ . लोक चाह की न दाह, द्वेष को प्रवेश नाह। शुद्ध चेतना प्रवाह, वृद्धता धरै अथाह॥ सूरि धर्म.॥
. ॐ ह्रीं सूरिपरमतपेभ्यो नमः अध्य॑ ॥२२०॥ .. मोह को न जोर जाय, घोर आपदा नसाय। घोरतें तपो सु लोक, शीश जाय मुक्त पाय॥ सूरि धर्म.॥
ॐ ह्रीं सूरितपोधोरगुणेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२२१॥
कामिनीमोहन छन्द मात्रा २० वृद्धपर वृद्ध गुण गहन नित हो जहाँ,
शाश्वतं पूर्णता सातिशय गुण तहाँ। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये,
__मैं नमूं जोरकर मोक्षधामी भये॥ . ॐ ह्रीं सूरिघोरगुणपराक्रमेभ्यो नमः अयं ॥२२२॥ एक समभावसम और नहीं ऋद्धि है,
सर्व ही ऋद्धि जाके भये सिद्धि है।