Book Title: Shrutsagar Ank 2003 09 011
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ आर्थिक सामाजिक व्यवस्थाएँ अपना लेने की वजह से गाँव, कस्बों के टूटने से हुआ शहरीकरण एवं अपने हृदय में रहे सांस्कृतिक गौरव को योजना पूर्वक तोड़नेवाली शिक्षा प्रणाली को अपनाने से हमारे भीतर अपनी संस्कृति व विरासत की ओर खड़ी हुई उपेक्षा. फलस्वरूप ऐसे भी अनेक लोग मिले जिन्हें स्वयं श्रुतोद्धार का कार्य करना या इसमें सहकार देना तो दूर रहा, कार्य में रोड़े डालना मात्र अपना कर्तव्य लगता है. ऐसों के बीच भी हर विघ्नों को लांघ कर अडिग संकल्प के धनी आचार्यश्री निरंतर यह कार्य करते ही रहे हैं. - पूज्यश्री इतना ही कर के रूके नहीं अपितु भारतीय शिल्प कला-स्थापत्य और खासकर जैन शिल्प स्थापत्य के उत्तम नमूने संगृहीत कर इसी संस्था में एक सुंदर संग्रहालय भी स्थापित करवाया है, जो सम्राट संप्रति संग्रहालय के नाम से विख्यात है. आचार्यश्री की कड़ी मेहनत तथा अटूट लगन से आज इस ग्रन्थागार में हस्तप्रत, ताड़पत्र व पुस्तकों का करीबन तीन लाख से ऊपर विशाल संग्रह, अनेक स्वर्णलिखित ग्रंथ, बेशकीमती सामग्री, सचित्र प्रतें, सैकड़ों मूर्तियाँ, शिल्प-स्थापत्य इत्यादि बहुमूल्य पुरातन सामग्री व सुंदर शिल्पकला के नमूने जैन व भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि व धरोहर के रूप में विद्यमान है. इस संग्रह के सदुपयोग का लाभ चतुर्विध संघ और देशी-विदेशी विद्वानों को निरंतर मिल रहा है. इतना ही नहीं यहाँ पर विकसित आधुनिक सुविधाओं के कारण संशोधन के क्षेत्र में कार्य कर रहे विद्वानों के लिए यह ज्ञानमंदिर आशीर्वाद रूप सिद्ध हुआ है. सच कहा जाय तो सैकड़ों वर्षों के बाद इतने विशाल जैन श्रुत साहित्य की सुरक्षा करनेवाले जैनाचार्यों में आचार्यश्री का सम्मानित नाम सदियों तक अग्र पंक्तियों में अंकित रहेगा. परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसरि महाराजश्री ने अनेक छोटे-बड़े मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया है. अनेक स्थानों पर जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई हैं परंतु श्रुतोद्धार का जो उन्होंने प्रयास किया है उसे इतिहास कभी भूला नहीं सकेगा. कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं. १ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृतरूप से भरी गई हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है. प्रत्येक विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के प्रकाशन का आयोजन है. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति की प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होगी. १.१ जैन कृति वाली प्रतें. १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रतें. For Private and Personal Use Only

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