Book Title: Shrutsagar Ank 2003 09 011
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ १९ ४३,२३६ पन्नों की फोटोस्टेट प्रतियाँ मुख्य कार्यालय के वहीवटी कार्यों हेतु उपलब्ध कराई गईं. ४. पत्र-पत्रिका विभाग : संस्था में लगभग १७ से २० हजार जितनी पुरानी तथा नवीन पत्रिकाएँ संग्रहित की गई हैं. इनमें से कुछ पत्रिकाओं तथा जर्नल्स के सेट दुर्लभ हैं. जिनका स्वतः में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. प्रतिमास औसतन ६०-६५ नवीन पत्र-पत्रिकाएँ खरीद तथा भेट में नियमित आती हैं. इन्हें वाचकों को पठनार्थ उपलब्ध कराया जाता है. पत्रिकाओं की प्राथमिक सूचनाओं का कम्प्यूटरीकरण कार्य विगत दो वर्षों से ही प्रारम्भ किया गया है. मुद्रित पुस्तकों तथा हस्तप्रतों के कम्प्यूटरीकरण कार्य को प्रथम वरीयता देने के कारण इस कार्य को प्रारम्भ करने में विलम्ब हुआ है. प्रथम चरण में अभी १०,७२४ पत्रिकाओं की सामान्य सूचनाएँ कम्प्यूटरीकृत की गईं है. शेष का कार्य प्रगति पर है. अभी इस दिशा में पर्याप्त कार्य शेष है. ५. पुस्तक वितरण : २०,००० पुस्तकें संस्था के लिए अनुपयोगी होने के कारण अथवा भेट में आवश्यकता से अधिक प्राप्त होने के कारण समयोचित अन्य संस्थाओं/संघों को उनकी आवश्यकतानुसार भेंट स्वरूप दी गई. जिनके लाभार्थी हैं- श्रुतनिधि ट्रस्ट (अहमदाबाद), शारदाबेन चीमनभाई एजूकेशनल रीसर्च इन्स्टीच्यूट (अहमदाबाद), प्राकृत भारती एकेडमी (जयपुर), प्राच्य विद्यामंदिर (शाजापुर), जैन सेन्टर, अमेरिका व यू. के. तथा आम्बावाडी, अहमदाबाद, सिरोडी (राजस्थान), बुद्धिविहार (माउन्ट आबू) अजीमगंज, कलकत्ता आदि के श्रीसंघ. (४) आर्यरक्षितसूरि शोधसागर जैनागमों के अध्ययन हेतु मास्टर-की रूप अनुयोगद्वारसूत्र के रचयिता युग प्रधान श्री आर्यरक्षितसूरि को समर्पित इस अनुसन्धान का मुख्य ध्येय जैन परम्परा के अनुरूप जैन साहित्य के संदर्भ में गीतार्थ निश्रित शोध-खोल एवं अध्ययन-संशोधन हेतु यथासम्भव सामग्री एवं सुविधाओं को उपलब्ध करवाकर उसे प्रोत्साहित करना व सरल और सफल बनाना है. जैन साहित्य को भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व साहित्य में अपना एक अनोखा व विशिष्ट स्थान प्राप्त है. इसमें जैनधर्म के प्रवर्तक, प्रवर्धक तथा संरक्षणशील श्रमण परम्परा के असंख्य मनीषियों की साधना का निचोड़ है, जो किसी भी देश काल के जीव की गतिविधि के हर पहलू को स्पर्श करता है. इस ज्ञान परम्परा को सशक्त करने, आत्मार्थियों को इसकी योग्य उपलब्धि के द्वारा सम्यक उपयोग हो सके इसके लिए इस अनुभाग में विविध विशिष्ट परियोजनाएँ गतिशील की जा रही हैं. जैन साहित्य व साहित्यकार कोश परियोजना : इस परियोजना के अंतर्गत काल दोष से लुप्त हो रहे जैन साहित्य के मुद्रित एवं हस्तलिखित ग्रंथों में अन्तर्निहित विविध सूचनाओं का डाटा-बेस खड़ा किया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत किसी भी कृति, विद्वान, हस्तप्रत, प्रकाशन, पुस्तक आदि की सूक्ष्मातिसूक्ष्म विस्तृत सूचनाएँ खास तौर पर विकसित प्रोग्राम के द्वारा कम्प्यूटर पर प्रविष्ट की जाती हैं. कृति से सम्बन्धित सूचनाओं में उसके नाम, अन्य नाम, आदिवाक्य, अन्तवाक्य, परिमाण, कृति परिवार, भाषा, एकाधिक कर्ता- अन्य प्रचलित नामों के साथ ही कृति से सम्बन्धित हस्तप्रत एवं प्रकाशनों की विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकती है. विद्वान से सम्बन्धित सूचनाओं में उनके प्रचलित अन्य नाम, उनकी गुरु-शिष्य व समुदाय परम्परा, समय, उनके द्वारा रचित कृतियाँ, विद्वान के नामोल्लेख वाली हस्तप्रतों आदि के विषय में सूचनाएँ तथा संपादित प्रकाशन आदि उपलब्ध हो सकते हैं. For Private and Personal Use Only

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