Book Title: Shrutsagar Ank 2003 09 011
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ ३७ नींद नहीं आती है तो यहाँ आराम से नींद लेते हैं. एक बार साधु महाराज प्रवचन देते थे और आसोजी नाम के एक श्रावक आगे बैठ कर आराम से नींद ले रहे थे. यह बात युवान साधु को अच्छी नहीं लगी. नींद एक प्रकार का प्रमाद है. साधु प्रमाद के दुश्मन होते हैं. साधु आसोजी से कहते हैं - "आसोजी, सोते हो या जागते हो?" आसोजी कहते हैं - "नहीं महाराज, जागता हूँ ध्यान से सुन रहा हूँ." थोडी देर के बाद आसोजी ने फिर समाधि लगा दी. साधु फिर आसोजी को कहते - "क्यों आसोजी, जागते हो?" आसोजी ने फिर वही जवाब दिया. थोड़ी देर के बाद फिर समाधि में चढ़ गये. अब साधु सोचते हैं कि अब आसोजी को बराबर क्रॉस में पकड़ना चाहिये. साध आसोजी को कहते- "क्यों आसोजी जीते हो?" आसोजी ने कहा, "नहीं नहीं महाराज" साधु कहे, "प्रवचन मुड़दों के लिए नहीं जीवित व्यक्ति के लिये होता है. जीवन को एक बार जागृत करो और जागृति में साधना करो जागृति में स्वयं की खोज करो. एक बार देवों की सभा में परमात्मा ने कहा-"मुझे ऐसी एकान्त जगह में ले चलो कि जहाँ मुझे आराम मिले. यहाँ इन्सानों ने तो मुझे हैरानकर रखा है. बार-बार मेरे पास आकर भिखारी की तरह मांगते रहते हैं." देवो ने सोचा परमात्मा को चंद्रलोक मे लिया जाय. परमात्माने कहा- "नहीं वहां मुझे शांति नहीं मिलेगी, क्योंकि आदमी अभी चंद्रलोक में भी जाने का प्रयास कर रहा है." देवो ने सोचा परमात्मा को हिमालय के उपर लिया जाय. परमात्मा ने कहा-"वहां भी तो तेनसिंग जैसे गिर्यारोहक आ जाएंगे." देवोने सोचा परमात्मा को पाताल में लिया जाय. परमात्मा ने कहा "ड्रीलींग कर के आदमी वहाँ भी आ जाऐगा." देवों ने विचार किया और कहा आप मानव के अंतर हृदय में जावो. परमात्मा ने कहा-"यह जगह तो बहुत सुरक्षित है." कहने का मतलब आदमी सुख को संसार मे खोज रहा है लेकिन उसको अपने अंतर-मन को देखने के लिए फुरसद ही नहीं है. आत्मा में परमात्मा है. परमात्मा बनने के लिए कौन सी प्रक्रिया है? प्रवचन से जीवन का परिचय होता है. जीवन पवित्र बनता है. पवित्रता से जीवन की पूर्णता साकार बनती है. प्रवचन से विचार जागृत होंगे, और विचार आचार को जागृत करेंगे. परमात्मा का मार्गदर्शन अपूर्व है. इस मार्गदर्शन से शैतान भी संत बनता है. पापी परमेश्वर बनता है. जैन साधु हमेशा प्रसन्न होते हैं. संपूर्णतः त्यागमय भूमिका में जीवन की आराधना करते हैं. वो तो सिर्फ स्नेह-प्रेम के भूखे होते हैं. आप के प्रेम ने हमे यहाँ खीच कर लाया है. आपका प्रेम चौदह केरेट का नहीं है चौबीस केरेट का है. मेरी अंतर कामना है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मंदिर बने. वीतराग की विचार धारा से जीवन में जागति आए. जागति में की हई आराधना से सफलता मिलेगी. वर्गहीनता, वादशून्यता यह जैन धर्म की विशिष्टता है. श्वेतांबर या दिगंबर इन शब्दों में परमात्मा नहीं है. कोई भी वाद या पक्ष या युक्ति प्रयुक्ति में मुक्ति नहीं हैं. काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, माया, मान आदि कषायों से मुक्त होना ही मुक्ति है. यही सिद्धिपद है. धर्मग्रंथों से स्वयं का परिचय होता है. धर्म याने अंतःकरण की शुद्धता होती है. महावीर की दृष्टि सापेक्ष है. विविध पर्याय से सत्यता जानने की सापेक्ष दृष्टि महावीर ने बतलाई. सापेक्ष दृष्टि से संघर्ष मिट जाता है- समन्वय हो जाता है. महावीर ने कहा- "पदार्थ एक है लेकिन परिचय अनेक. For Private and Personal Use Only

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