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प्रवचन - पराग
" शिक्षा प्रणाली का आधार भारतीय होना चाहिए..."
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श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९
-आचार्य पद्मसागरसूरि
अनंत उपकारी जिनेश्वर परमात्मा ने सर्व जीवों के कल्याण हेतु देशना देकर सभी जीवों पर परम उपकार किया है. जिसमें जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं. हमारी अज्ञानता के कारण मिथ्यात्व का पोषण होता है, यही कारण है कि बार-बार संसार में आवागमन होता है. अज्ञान दशा मिथ्यात्व का पोषण करती है. ज्ञान का मतलब आधुनिक डिग्रियाँ नहीं हैं, इनका कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं है. ज्ञान वह है जो जीवन को सही दिशा बतलाए. हमारे ज्ञान पर हमारे विवेक का अनुशासन होना चाहिए. स्वयं का परिचय करने के लिए जो बुद्धि मिली है, उसका दुरुपयोग कर हम हाईड्रोजन बम बनाने तक का अपराध कर चुके हैं. यह आत्मा के लिए कितना बड़ा अपराध है? ज्ञान पर विवेक का अभाव हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है. कषायों के पोषण का परिणाम यह है कि हमारा जीवन ज्योति की जगह ज्वाला बन रहा है. जहाँ हमें मोक्ष मिलना चाहिए, वहाँ हम बार-बार आवागमन के चक्कर में फँस रहे हैं. बुद्धि का यह घोर दुरुपयोग करना मूर्खता का लक्षण है.
हमें ज्ञान के प्रकाश में जीवन का भविष्य देखना है. सम्यक् ज्ञान के प्रकाश में ही जीवन आगे बढ़ सकता है. स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं को पढ़ना. ज्ञान के प्रकाश में हमें स्वाध्याय करना है, भविष्य में प्रवेश करने का मंगलद्वार मानव जीवन है. श्मशान यदि नगर के किनारे न होकर मध्य में होता तो रोज लोगों को मालूम पड़ता कि हमें भी किसी समय यहाँ लाया जाएगा. यह वैराग्य को पुष्ट करने के निमित्त बनता. मानव को स्वयं के गुणों को किस प्रकार पुष्ट करना है, यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. परमात्मा महावीर ने कहा है कि जैसे-जैसे मानव को ज्ञान प्राप्त होता है, उसमें लघुता आती है और बाद में वह गुरुता को प्राप्त करता है.
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ज्ञान की विकृति भविष्य में पशुता को प्राप्त कराती है. आज हमारी परंपराएँ बदल रही हैं और विकृति को प्राप्त हो रही हैं. लोगों में राष्ट्रीय भावना का अभाव, वेशभूषा, भाषा, शिष्टाचार और संस्कार सब कुछ बदल गया है. लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का परिणाम यह है कि आज अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद भी अंग्रेजीयत बरकार है. परिणामस्वरूप आध्यात्मिक दृष्टि से हम दिवालिया बन चुके हैं. इसके लिए हमें ज्ञान के प्रकाश में जगत् का अवलोकन करना है. ज्ञान के साथ क्रिया और क्रिया के साथ ज्ञान का समन्वय मोक्ष का साधन बनता है. आत्मा की गहराई से जब ज्ञान प्राप्त होता है तब उसमें पूर्णता होती है, अनंत ज्ञान का प्रवाह होता है, मन को अपूर्व संतोष प्राप्त होता है. ऐसे महापुरुषों के जीवन का एक अंश भी मनुष्य के जीवन में आ जाय तो जीवन सफल हो जाय. महावीर दर्शन में सत्य से परिपूर्ण वैज्ञानिक रहस्य मिलेगा. परमात्मा के मार्ग पर चलने वाले का अवश्य कल्याण होगा. इस कल्याण प्राप्ति के मार्ग के लिए भारतीय प्रणाली के अनुरूप हमारी शिक्षा होनी चाहिए, जो नैतिकता, सदाचार, राष्ट्रीयता और चारित्र के बीज मनुष्य के अन्दर कूट-कूट कर भर दे. मैकाले की शिक्षा हमारे किसी काम की नहीं, क्योंकि उसका इरादा ही हमें पतित करना था, हमें यदि पुनः भारतीय होने का अहसास करना है तो प्राचीन शिक्षा प्रणाली अपनानी होगी. साधु-संत संसार के चौराहे पर खड़े ट्राफिक पुलिसवाले...
प्रवचन से परमात्मा बनने की प्रक्रिया प्रभु ने बतलाई है. परमात्मा महावीर तो करूणा के सागर थे,