Book Title: Shrutsagar Ank 2003 09 011
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ ३३ वात्सल्य की मूर्ति थे, वे तो वीतराग हो चुके थे फिर भी उन्होंने प्रवचन दिया. जीवमात्र के दुःख से मुक्ति के लिए बड़ी करुणा से प्रवचन दिया. इस प्रवचन में दार्शनिकता, आत्मा का स्वरूप, षड्द्रव्य परिचय, लौकिक व्यवहार (जन्म से मृत्यु पर्यंत) आदि बहुत सारी बातें थी. उन्होंने जगत को सन्मार्ग दिखाया, निःस्वार्थ जीवमात्र के कल्याण हेतु आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया में जीव का दायित्व है कि अपना नैतिक कर्तव्य समझें. अपने भीतर अपने मन में ही समस्याओं का समाधान होता है, किन्तु अक्सर हम उसे बाहर खोजते हैं. समुद्र के किनारे ठंडी हवा मिल सकती है, किन्तु यदि मोती चाहिए तो डुबकी लगानी ही पड़ेगी. परमात्मा के प्रवचन का आधार लिया जाय तो कोई संसार में डूब नहीं सकता. परिपूर्ण सत्य की प्राप्ति के लिए परमात्मा के वचनों का सहारा है. सत्य की प्राप्ति के लिए कुतर्क छोड़ना होगा. जीवन यहीं से प्रारम्भ होता है. साधु-संत संसार के चौराहे पर खड़े ट्राफिक पुलिस वाले जैसे हैं, जो सतत यह देखते रहते हैं कि जीव कहीं दुर्घटनाग्रस्त न जाय. परमात्मा श्री महावीर ने भी यही किया था. परमात्मा की इस परंपरा को हमें कायम रखना है. इस परंपरा को हमें अपने घर से, परिवार से प्रारम्भ करना है. धर्म की शुरुआत अपने घर से करनी है. सबसे पहले हमें यह देखना है कि हम अपने बच्चों के लिए कितना समय देते हैं. हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है कि बालक पूर्ण रूप से समाजोपयोगी, धार्मिक परंपराओं का रक्षक तथा हमारे चित्त को समाधि देने वाला बने. आज लोगों के पास समय नहीं है, फिर भी हमें यह करना है, क्योंकि बच्चों को उचित शिक्षा न देने के परिणाम हमें ही भोगने हैं, हर जीव अपने कर्म लेकर आता है. हमें अपने पूर्वजों का उपकार मानना चाहिए कि उन्होंने कितनी श्रेष्ठ परम्पराएँ हमें दी हैं, हम जो कुछ भी हैं उन्हीं की बदौलत . ऐसी विरासत अन्य देशों में नहीं मिलती. परमात्मा ने हमारे लिए जो कुछ कहा है वह हमारे आचरण से प्रगट होना चाहिए. इसके लिए हमें बहुत कुछ सहन करना पड़ सकता है. जहाँ परिवार की एकता हो और प्रेम का निवास हो वहाँ पर परमात्मा निवास करता है. ऐसे ही परिवार का कल्याण होता है. भौतिकता से घिरे वातावरण से निकलने के लिए चेतना आवश्यक है. हम कहाँ हैं, यह पता हो तो हम अपना भविष्य बना सकते हैं... हमें अपने धर्म, कुल, परिवार की उत्तमता का अहसास होना चाहिए. हमारा जीवन चलता-फिरता स्कूल होना चाहिए, जिससे हम दूसरों के लिए प्रेरणा, शिक्षा के आदर्श बनें. जो व्यक्ति धर्म के लिए वफादार होता है वह देश के लिए भी वफादार होता है. व्यक्ति की बाहरी समृद्धि बढ़ी है, किन्तु वह अंदर से दरिद्र हो चुका है. अंदर की शुद्धि के लिए मन को शुद्ध करना होगा. अपने अंतर को पवित्र करना होगा. व्यक्ति दुर्व्यसन छोड़ कर मात्र भक्ति का ही व्यसन कर ले, तो जीवन धर्ममय बन जाय. प्रजा का विनाश न हो इसी लिए परमात्मा ने आचार ग्रंथों की रचना की है. आज हमें उसके लिए चिन्तन करना आवश्यक है. जिसकी स्मृति में परमात्मा प्रतिष्ठित हो, उसे दुनिया में कोई परास्त नहीं कर सकता. श्रद्धा के अभाव में प्रतिक्रमण पूजा आदि से वीतरागता प्राप्त नहीं हो सकती. श्रद्धा से ही कल्पना साकार हो सकती है. इस वक्त यदि यह पता हो कि हम कहाँ हैं? तभी हम अपना भविष्य बना सकते हैं, अन्यथा हमारा उद्धार सम्भव नहीं. विश्वशान्ति का मूल मंत्र क्षमापना : कषायों से मुक्ति बिना मोक्ष संभव नहीं है विश्वशांति का मूल मंत्र क्षमापना है. इस विषय पर प्रवचन देते हुए महान श्रुतोद्धारक जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा तीर्थ में कहा कि संसार की जेल में For Private and Personal Use Only

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