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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की दशवर्षीय उपलब्धियों की झलक
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श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९
(१) देवर्द्धि गणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार
वीर संवत् ९८० ( मतान्तर से ९९३) में एक शताब्दी में चार-चार अकाल की परिस्थिति में लुप्तप्राय हो रहे भगवान महावीर के उपदेशों को पुनः सुसंकलित करने के लिए भारतवर्ष के समस्त श्री श्रमण संघ को तृतीय वाचना हेतु गुजरात के वलभीपुर में एकत्रित करने वाले पूज्य श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अमर स्मृति में जैन आर्य संस्कृति की अमूल्य निधि - रूप हस्तप्रत अनुभाग का नामकरण किया गया है.
आगम, न्याय, दर्शन, योग, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण आदि विषयों से सम्बन्धित मुख्यतः जैन धर्म एवं साथ ही वैदिक व अन्य साहित्य से संबद्ध इस विशिष्ट संग्रह के रखरखाव तथा वाचकों को उनकी योग्यतानुसार उपलब्ध करने का कार्य परंपरागत पद्धति के अनुसार यहाँ संपन्न होता है. सभी अनमोल दुर्लभ शास्त्रग्रंथों को विशेष रूप से बने ऋतुजन्य दोषों से मुक्त कक्षों में पारम्परिक व वैज्ञानिक ढंग के संयोजन से विशिष्ट प्रकार की काष्ठ मंजूषाओं में संरक्षित किये जाने का कार्य हो रहा है. क्षतिग्रस्त प्रतियों को रासायनिक प्रक्रिया से सुरक्षित करने की बृहद् योजना कार्यान्वित की जा रही है. इस विभाग की एक दशक में सम्पन्न विविध कार्यों की झलक प्रस्तुत है
१. अस्त-व्यस्त हस्तलिखित शास्त्रों का मिलान व वर्गीकरण : कार्य के प्रारम्भिक चरण में अस्तव्यस्त अवस्था में प्राप्त हुई लगभग ६५,००० हस्तप्रतों का वर्गीकरण प.पू. मुनिराज श्री निर्वाणसागरजी म. सा. व मुनिश्री अजयसागरजी म. सा. के कुशल मार्गदर्शन में हुआ. तत्पश्चात् इस कार्य को आगे बढ़ाते हुए ५ पंडितों ने अब तक संग्रहित लगभग आधे से ज्यादा हस्तप्रतों को मिलाने का कार्य पूर्ण कर लिया है. हजारों की संख्या में अधूरे दुर्लभ शास्त्रों को बिखरे पन्नों में से एकत्र कर पूर्ण किया जा सका है. इस कार्य के अंतर्गत प्रमुख रूप से (१) बिखरे पन्नों का मिलान कर ग्रंथों को पूर्ण करना, (२) फ्यूमिगेशन की प्रक्रिया द्वारा ग्रंथों को जंतुमुक्त रखना, (३) चिपके पत्रों को योग्य प्रक्रिया से अलग करना, (४) जीर्ण पत्रों को पुनः मजबूती प्रदान करना व उनकी फोटोकोपी आदि प्रतिलिपि बनाना, (५) साईजिंग, (६) वर्गीकरण, (७) रेपर लगाने, (८) रबर स्टाम्प लगाने, (९) नाप लेने, (१०) हस्तप्रत के पंक्ति - अक्षरादि की औसतन गणना, (११) इनकी भौतिक दशा संबन्धी विस्तृत कोडिंग, (१२) उन पर खादीभंडार के हस्तनिर्मित हानिरहित कागज के वेष्टन चढ़ाने, (१३) लाल कपड़े में पोथियों व ग्रंथों को बांधने आदि कार्य किये जाते हैं. ये सभी कार्य पर्याप्त श्रमसाध्य व अत्यन्त जटिल होते है. जिसे संपन्न करने के लिए काफी धैर्य, अनुभव व तर्कशक्ति की आवश्यकता होती है. २. शास्त्रग्रंथों का भण्डारण : हस्तलिखित शास्त्रग्रंथों को पूर्णतया सुरक्षित करने हेतु जंतु, तापमान व आर्द्रता ( भेज-नमी) से मुक्त सागवान लकड़ी की खास प्रकार से निर्मित मंजूषा (कबाटों) में रखने हेतु विशेष आयोजन किया गया है तथा इन मंजूषाओं के निर्माण का कार्य प्रगति पर है. इन काष्ठनिर्मित हस्तप्रत मंजूषाओं को जीव-जंतु, रजकण, वातावरण की आर्द्रता आदि से सुरक्षित कर स्टेनलेस स्टील की मोबाईल स्टोरेज सिस्टम में रखा जाएगा.
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३. हस्तलिखित शास्त्र सूचीकरण खास तौर पर विकसित विश्व की एक श्रेष्ठतम सूचीकरण प्रणाली द्वारा ग्रंथों के विषय में सूक्ष्मतम सूचनाओं को संस्था सीधे ही कम्प्यूटर पर सूचीबद्ध करने का कार्य तीव्र
के तहत विशिष्ट प्रशिक्षित पंडितों की टीम के में ही विकसित कम्प्यूटर प्रोग्राम की मदद से