Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जनवरी-२०१९ पूज्य गणिश्री जयसोम रचिता बारह भावनासंधि आर्य मेहुलप्रभसागर कृति परिचय जैन दर्शन में मोक्ष के चार मार्ग बताए गए हैं यथा- दान, शील, तप और भाव। इनमें अंतिम मार्ग भाव है। चतुर्थ मार्ग अतिशय महत्वपूर्ण है। भाव के बिना दान, शील, तप आदि अल्प फलदायक होते हैं। अर्थात् दान के साथ दान देने की सद्भावना होगी, शील के पालन की सच्ची भावना होगी एवं तप करने के सुंदर भाव होंगे तभी वे मोक्ष के हेतु बनेंगे। ___ भावना यानि किसी भी विषय पर मनोयोग पूर्वक विचार करना, विचारों के द्वारा जैसी भावना होती है वैसा ही फल मिलता है। शास्त्रकार भगवंतों ने भावना के संबंध में बड़ा ही गहरा एवं व्यापक विश्लेषण किया है। आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने भावना की परिभाषा देते हुए कहा है कि भाव्यते अनेनेति भावना' अर्थात् जिसके द्वारा मन को भावित किया जाए, संस्कारित किया जाए, उसे भावना कहते हैं। श्री मलयगिरिजी भगवंत ने भावना को परिकर्म अर्थात् विचारों की साज-सज्जा कहा है। जैसे शरीर को तेल, इत्र आदि से बार-बार सजाया जाता है, वैसे ही विचारों को विशिष्ट भावों के साथ पुनः पुनः जोड़ा जाता है। इसका कारण यह है कि मन की चंचलता से शरीर और वाक् संयम प्रभावित होता रहता है। मन को एकाग्र करने की बहुत सारी प्रक्रियाओं में से एक है भावना। साधक को मोक्षमार्ग की प्राप्ति के लिए बारह भावनाओं का चिन्तन करने का निर्देश दिया गया है- १. अनित्य भावना, २. अशरण भावना, ३. संसार भावना, ४. एकत्व भावना, ५. अन्यत्व भावना, ६. अशुचि भावना, ७. आस्रव भावना, ८. संवर भावना, ९. निर्जरा भावना, १०. धर्म भावना, ११. लोकस्वरूप भावना तथा १२. बोधिदुर्लभ भावना। इन बारह भावनाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है१. अनित्य भावना- जगत में जितने भी पौगलिक पदार्थ हैं वे सभी अनित्य हैं। घास की नोंक पर रहे हुए ओस की बूँद की तरह जीवन भी आयुष्य की नोंक पर टिका For Private and Personal Use Only

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