Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 30 ललतां अंगना बेटा रेसि । (कडी. ३९०) पाहिं=करतां पाखि=सिवाय त्यादि शब्दोना प्रयोगोनां अवतरणो विस्तार भये ज छोडी दउं छु । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनवरी-२०१९ कर्मणनुं सीताहरण, भालणनी कदंबरी, हर्षकुलनी वसुदेवचउपइ, भीमनी हरिलीला, जनार्दननुं उषाहरण, लावण्यसमयनो विमलप्रबंध आ ग्रन्थोमां प्रयोगो नहि जेवा ज बल्के अदृश्य थइ जाय छे रेसिनो प्रयोग कंईक अंशे सोळमा सैकाना अंत लगी रहे छे; लगइंनो 'सुधी' अर्थ कायम थाय छे; रहई, ह्रई, अने रइं अदृश्य थाय छे; पाहिं करतां विकृतरूपे अने पाखिं= सिवाय हजु य कविता मां देखा दे छे। थउ नो थो थइने भूलाई जतो ठेठ प्रेमानंद सुधी मळे छे । स्वरयुग्ममां अइनो इ अने ए प्रचलित थयां छे, क्रियापदना वर्त. 3. एक. व. मां ए लखवा करतां इ अने अइ जूना रूढ; ज्यारे ए नवो प्रचारमां आवे छे अने लौकिक उच्चारनां अनुबिंबसमा लखाणमां ए जोवामां आवे छे, अउनो ओ लखायेलो सारी हाथप्रतोमां पण सोळमा सैकाना उत्तरार्धमा जोवामां आवे छे। पण साथे साथे अउनां ऊ, उ अने अउ पण जोवामां आवे छे। लेखनप्रकारनां प्रमाणो अनुवादी प्रमाणो तरीके ठीक छे पण भाषाना स्वतन्त्र निर्णय माटे तो भाषाप्रयोगोनां प्रमाणो स्वतन्त्र अने सबळ छे । रूढिथी शिष्ट लेखनप्रकारमां सं. १५७४ भीमनी हरिलीला नी हाथप्रत गु. व. सो. ना संग्रहमां छे, तेमां क्रियापद वर्त. 3. पु. ए. व. मां अइनो अइ अने केटलेक स्थळे इ कर्यो छे. माथे मात्राने बदले पडीमात्रा घणे स्थळे प्रयुक्त छे; ज्यारे मारी मृगांकलेखारासनी सं. १५८२ नी प्रत शिष्ट लहिआनी लखेली न होइ घणी वार तत्कालीन उच्चारना अनुबिंबसमा लेखनप्रकारमां घणीवार सरी पडे छे। लावण्यसमयनो विमल प्रबंध जे सं. १५८४ मां लखायेली प्रत प्रमाणे अक्षरशः प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे तेमांथी नीचे टांचण आपुं छुः रामा रंगि रमि सोगठे देतां दांन भोज इ हठे । नाचइ रंभ तिलोत्तम जोड कुतिगीआना पुहचि कोड ॥ ऊपरनां दृष्टांतमां क्रि. वर्त. ३. पु. ए. व= रमि, हठे नाचइ, पुहचि, हठे बतावे छे के क्रियापदमां अइनो ए लौकिक व्यवहारे प्रचारमां आव्यो हतो । ६. ऊपरनी चर्चानी तारवणी नीचे प्रमाणे छे। For Private and Personal Use Only प्राकृतप्रचुर तल गुजरातनी साहित्यभाषा, संस्कृतप्रचुर तल गुजरातनी साहित्यभाषा अने तल काठिआवाडनी लोकभाषा ए भेद तद्दन असमंजस छे। सोळमा

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