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SHRUTSAGAR
January-2019 सैकानी गुजराती भाषा ब्राह्मणो, जैनो, पारसीओ अने वळी काठियावाडीओमां पण एक ज हती। काठिआवाडी लोकभाषानी असरने लीधे गुजरातनी भाषामां महत्वना फेरफार थयानुं मतमंडन वजुद वगरनु ठरे छ।
स्वरयुग्म अउनो ओ अने उ लखवानो प्रचार सोळमाना उत्तरार्धमां अस्तित्वमां आव्यो । आत्रणेयनो उच्चार अ+अ+उ अने वनी वचटनी असर आथी करीने (अउ=) ओ अन उ एक बीजाना प्रास तरीके वपराता। कोक स्थळे उ अने अनो पण प्रास तरीके उपयोग थतो। अउ जो के पंदरमा सोळमा सैकामां लेखन प्रकारे लखातुं पण ते ऊपर बताव्यो तेम-अथवा श्री. नरसिंहराव जेने अर्धविवत ओ कहे छे तेम-उच्चार थतो। आ उच्चार प्रमाणे अइनो पण अर्धविवृत्त ए उच्चार थतो जो को लेखनप्रकारमां इ, ए, ए, अ, इय एय विकल्पो सोळमा सैकानी उत्तरभागनी हाथप्रतोमां देखा दे छे। अइने इ अने अइ तरीके लखवानी रीति शिष्ट लेखको अनसरता कारण के सोळमाना अंत सुधी अने ते पछी लगभग अर्ध सैकुंए शिरस्तो चालु रह्यो एम हाथप्रतो उपरथी मालम पडे छे। लेखनप्रकार अने उच्चार ए समान न हता; पण केटलीकवार एम मालम पडे छे के रूपबंध छंदोमां के प्रासमां अपवाद तरीके उच्चार लेखनप्रकार प्रमाणे विकृत करातो।
(क्रमशः) बुद्धिप्रकाश, पुस्तक -८२ अंक-१ मांथी साभार
F श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे.
निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर)
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