Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर जनवरी-२०१९ __पंक्ति ३. तणे अने पं. ६. रहियो आ पाछळनी लेखन प्रकारनी असर जणाय छे; पं. ८मां रहइं अनुषंगी शब्दनो प्रयोग छ । आखा य काव्यमां अजाण्ये समकालीन लेखनप्रकार कोक कोक वार देखा दइ दे छे। आ पछी सं. १५०८मां लखायेलुं वसंतविलासमांथी दाखलो लउं छु । आ काव्य गू.व. सो. तरफथी दि. बा. के. ह. ध्रुव संपादित प्राचीनगुर्जरकाव्यमां लेवामां आव्यु छे: रहइनो प्रयोग श्री नरसिंहरावनां Lectutes ll P 122 प्रमाणेः वालंभ रहइं सुविचार । (st 72); ज्यारे दि. बा. के. ह. ध्रुवनी वाचना प्रमाणे प्राचीन गुर्जर काव्य पा. २२ कडी. ७०) एकि रे दिइ बाली ताली छन्दिहिं रास एक दिइ उपालम्भ रे वालम्भरि सविलास एज प्रमाणे कडी ३० : बउलविलूधला महुअर बहु अ रचइं झणकार मयणर हइ आणन्दण वन्दण करइ कइ वार ॥ बीजी पंक्तिमां-मयणर हइं आमन्दण ए वाचना ठीक होय; अथवा तो मयणरि हइआणन्दण एम हो, जोईए रहइं, रि छट्ठी विभक्तिमां प्रयुक्त। आखं काव्य तत्कालीन भाषाविशेषोथी भरपूर छ । स्वरयुग्म अइ=अइ, इ, ए (दा.त. ए ए जवल्लेज कडी ३२ के कि) अउ अउ अने उ. सोळमां सैकानी शरुआतमां छिए ते दृश्यमान थाय छे। तेज प्रमाणे सं. १५१२नो कान्हडदेप्रबंध. लगइ= ‘थी' 'साथे'ना अर्थमां तहीं लगई जगि जालहुर जण जम्पइ इणि कालि॥ (देरासरी. आवृ. १. पा. २ कडी ७) तिणि अवगणिउ माधव बम्भ तांहि लगइ विग्रह आरम्भ (सदर. पा. २. कडी ७) रहइं=री छट्ठीना प्रयोगे कोइ कहेशे के आ तो मारवाडीनी असर छ । पण ते For Private and Personal Use Only

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