Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 January-2019 ‘वरतीपुरमंडणो मल्लिदेवों' कहकर कर्ता ने प्रभु की स्तवना की है, इससे प्रतीत होता है कि वरतीपुर नाम से मल्लिनाथजी का कोई तीर्थ होना चाहिए। वर्तमान में मल्लिनाथजी के तीर्थ में गुजरात स्थित भोयणी सुप्रसिद्ध है। वरतीपुर के बारे में अभी तक हमें कोई विवरण प्राप्त नहीं हो पाया है। वाचकों से नम्र निवेदन है कि यदि आपके पास इस संदर्भ में विशेष विवरण उपलब्ध हो तो हमें ज्ञात कराने का कष्ट करें कृति परिचय I कृति की भाषा मारुगुर्जर है । पद्यबद्ध इस कृति में १४ गाथाएँ, २ ढाल एवं कलश दिया गया है। प्रथम ढाल में श्रीमल्लिनाथजी की स्तवना की है। दूसरी ढाल में कर्ता ने अपनी गुरु परंपरा का उल्लेख किया है और कलश में फलश्रुति देते हुए कहा है कि मोहांधकार के निवारक, अच्छे दिन देने वाले, सूर्य के समान उत्तम ऐसे ये जिनेश्वर यदि मिल जाएँ तो दुर्गति के भय व सारे कष्ट दूर हो जाएँ । मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाए और हृदय हर्ष से भर जाए । कृति का रचना वर्ष ‘वेदसायकरसचंद' वि.सं. १६५४ है। कृति के रचना स्थल के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। 'वरतीपुरमंडणो मल्लिदेवो' के नाम से स्तवना की है तो संभव है कि रचना भी उसी स्थल पर की हो । गाथा ७, ८, १० के अंत में एक अतिरिक्त पद भी दिया गया है। इस भावपूर्ण कृति की शब्दरचना वाचक को विशेष प्रभावित करती है। कृति में कर्ता ने प्रभु के माता-पिता के नाम, लंछन और वर्ण को समाविष्ट करते हुए एवं मिथ्यादेवों को छोड़कर मल्लिजिन को भजने का निर्देश देते हुए स्तवना की है। प्रारंभ में दिया गया पद 'सुखसागरीया रे, तोनि वीनवुं वारोवार' आंकणी का पद दूध में रही शक्कर की तरह कृति की मधुरता में अभिवृद्धि करता है । कर्ता परिचय प्रस्तुत कृति के कर्ता श्रीकीर्तिउदय गणि तपागच्छीय विद्वान हैं। उनके गुरु का नाम चारित्रोदय गणि और गच्छनायक श्रीविजयसेनसूरि महाराज थे। कर्ता का समय कृति के रचनावर्ष के आधार पर वि. १६५४ माना जाता है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर कर्ता की अन्य एक कृति ‘महवीरजिन स्तवन' है। यह कृति भी प्रस्तुत कृति के साथ एक ही प्रत में उल्लिखित है एवं यह भी प्रायः अप्रकाशित है । कर्ता की अन्य कृतियाँ तथा शिष्यपरंपरादि के बारे में विशेष जानकारी अनुपलब्ध है। For Private and Personal Use Only

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