Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 21 कउडी काज न हारीयइ, जेम कनक नी कोडि । तिम भोगारथि कांइ गमइ, लाधी धरम नी जोडि जिम समुद्र माहि पाडीयउ, रतन न लाभइ तेह । तिम प्रमाद वसि हारीयउ, धरम दुहेल ह पाम्यउ धरम अछइ इहां, वली लहीस्यइ केम । तिणि करि लाधइ रांकध्रउ, जिम पामइ सुख खेम सुर नर रिद्धि कुसुम जिहां, सिवसुख फल सम जासु । धरम कलपतरु सेवंतां, पूजइ वंछित आ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलश इणि परि बारह भावन जाणी, आणा जिणिंद तणी मनि आणी । अहनिसि जेह धरइ मन माहइ, ते श्री जिनवर धर्म्म आराहइ January-2019 धामधूम में दिन गए, सोवत हो गई सांझ । आगम सुण्यौ न प्रभु भज्यो, जिनगी हो गई वांझ ॥ संवेग०॥६६॥ For Private and Personal Use Only संवेग०॥६७॥ संवेग० ॥६८॥ रस वारिधि रस ससिहर वरसइ १६४६, बीकानयर नयरि मन हरसइ । श्रीजिनचंद्रसूरि गुरुराजइ, एह विचार भण्यउ हितकाजइ प्रमोदमाणिक गणि सुहगुरु सीस, गणि जयसोम कहइ सुजगीस । आदीसर सुरतरु सुपसायइ, एह भणतां सवि सुख थायइ संवेग०॥६९॥ ॥७०॥ ॥७२॥ इति श्री बारह भावना संधिः समाप्तः (ता) ॥ छ ॥ संवत् १६८४ वर्षे जेठ सुदि १० दिने लिखितेयं प्रतिः वा० विमलकीर्त्तिगणिभिः । श्राविका पुण्यप्रभाविका धारा पठनार्थं । श्रीरस्तु श्रीः ॥ ॥७१॥ हस्तप्रत १२९३८३ भावार्थ - काम-काज में भाग- T-दौड़ करते हुए दिन बीत गए और शाम(रात) तो सोने में ही बीत गई। न आगम सुना (ज्ञान की बातें सुनीं) और न प्रभु का भजन किया, इस प्रकार जिन्दगी निष्फल हो गई ।

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