Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 19 January-2019 ढाल८ ॥४४॥ संवर०॥४५॥ संवर०॥४६॥ संवर०॥४७॥ संवर०॥४८॥ पंच समिति निरती विधइं रे, पालइ आदर आणी रे। त्रिण्हि गुपति गुपतां सदा जी, श्रुत परमारथ जाणी रे संवर भावन भावीयइजी, मनि समाधि धरि प्राणी रे। आगम माहे एहनाजी, फल हित प्रमुख वखाणी रे खंति प्रमुख दसविध सदाजी, साधु धरम जे धारइ जी। ते संवर रस अनुभवीजी, जनम मरण भय वारइ जी करम उदय करि आवीयाजी, जेह परीसह जीपइ जी। गयसुकुमाल तणी परइजी, ते दिनि दिनि अति दीपइजी संयम बारह भावना जी, मेलि सतावन भेदइजी। संवर तत्त्व विचारतां जी, असुभ करम बल भेदइ जी ढाल-९ ध्यान विनय काउसग धरउ रे, वेयावच्च सिझाय। पायछित्त करउ खरउ रे, दसविध धरि निरमाय रे प्राणी धरि संवेग विचारि, सदगुरु वचन संभारि रे प्राणी। तप अणसण छूणोदरी रे, वृत्ति प्रमिति रस त्याग। काम किलेस संलीनता रे, ए तपस्युं धरि राग रतनावलि कनकावली रे, एकावली गुण रयण । सिंघनिक्रीडित बिहुं परइ रे, तप करि धरि गुरु वयण तप विण किम निज आतमा रे, पामइ निरमल भाव । नवमी निर्जर भावनाजी, मन महि भावन भावि ढाल- १० धन धन गुरुमुखि श्रुत सुणी, जे पालइ गुरु सीखू ए। साध ए सिद्ध तणा घणा, सुख मीठा जिम ईखू ए भावन भावउ भावीया, धरम तणी इणि रीतू ए। भरत इलापुत्र नी परइ, थायइ त्रिजग वदीतु ए ॥४९॥ रे प्राणी०॥५०॥ रे प्राणी०॥५१॥ रे प्राणी०॥५२॥ ॥५३॥ भावन०॥५४॥ For Private and Personal Use Only

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