Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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ढाल- ६
देह असुचि करि पूरीयउ हो, असुचि करी उतपन्न । इम जाणी जे प्राणीया हो, धरम करइ ते धन्न
श्रुतसागर
सुविचार रे प्राणी, निज मन थिर करि जोइ । इणि संसारइ सुख भणी हो, धरम पक्षइ कुण होइ मंस रुहिर नख नइ नसा हो, मेद चरम वस केस । ए सरूप इणि देहनउ हो, किहां इहां सुचि लवलेस श्रोत्र वहइ नव अहनिसइ हो, पुरुष सरीरि असार । सोत्र इग्यारह नारि नइ हो, असुचि तणा भंडार नाना व्यंजन रसवती हो, जिहां थी विणसी जाइ । चोवा चंदन वलि सवे हो, जसु संगमि मल थाइ देह अथिर जिनवर कह्यउ हो, माटी भंड समान । एक सुकृत करि सासतउ हो, जिम सुख लहइ प्रधान
ढाल ७
आश्रव कारणि ए जगि जाणीयइ, परिहरि एहना संग । दुरगति जातां एहजि साथीया, तिणि ध्रमस्युं धरि रंग पंचे इंद्रिय सवि जगिनइ नडइ, विरुयां विषय सवाद । एकइ एकइ इंद्रियनइ वसइ, पामइ जीव प्रमाद नादइ मृगलउ रस वसि माछलउ, रूपइ देखि पतंग | वासइ भमरउ फरसइ हाथीयउ, पामइ रंग विरंग च्यारि कषाय निवारउ मन थकी, भवतरुनउ ए मूल । फल किंपाक समा रस जेहना, दुरगतिनइ अनुकूल पांचइ आश्रव दुख कारण गिणउ, जोग क्रिया वलि तेह । करम तणा थिति रस कारण वली, आस्रव भावन एह
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जनवरी-२०१९
॥३३॥
सुविचार०॥३४॥
सुविचार०||३५||
सुविचार०॥३६॥
सुविचार०||३७||
सुविचार०॥३८॥
आश्रव०॥३९॥
आश्रव०॥४०॥
आश्रव०॥४१॥
आश्रव०॥४२॥
आश्रव०॥४३॥

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