Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जनवरी-२०१९
भविक०॥१०॥
॥११॥
धरम०॥१२॥
धरम०॥१३॥
धरम०॥१४॥
श्रुतसागर इम जगि सर्व असासतउजी, जाणी म करि कुकर्म। इह भवि परभवि सुख भणीजी, साचउ करि जिनधर्म
ढाल २ धरम पक्षइ कुण जीवनइ रे, सरणइ राखणहार । मात पिता सुत सवि मिली रे, करि न सकइ उपकारो रे धरम हीयइ धरउ, असरण जाणि संसारो रे। जीव जतन करउ, जिम पामउ सुख सारो रे मिथिला नगरीनउ धणी रे, राजा नमि इण नामि । अंतेउर धन तेहनइ रे, कोइ न आव्यउ कामिरे साठि सहस सुत सगरना रे, नंद तणी धनरासि। राखी न सक्या तेहनइ रे, भोला हियइ विमासी एक सरण जिणवर तणउरे, सूधउ धरम संसारि। आतमहित करि तिण भणी रे, मानव जनम म हारि
ढाल ३ इणि संसारइ जीवडा रे, अरहट माला न्यायइ रे। वाउलि प्रेर्या पान ज्यु, अध ऊरध वलि थायइ रे इम जाणी हो प्राणी विषय निवारीयइ हो। सुखकारण हो श्री जिनधर्म संभारीयइ रे कीड पतंग पणउ भजइ रे, निरधननइ धनधारी रे। सोहागी दोहागीयउ रे, भूपति नइ भीखारी रे इम नटनी परि भवि भम्यउरे, विध विध वेस विणाणइ रे । सुख दुख जे तिहां भोगव्यां रे, णाणी विण कुण जाणइ रे जइ भव भमतां ऊभगा रे, तउ प्रमाद तजि जागउ रे । जंबू वयर तणी परइ रे, इणि विधि मारगि लागउरे
धरम०॥१५॥
॥१६॥
॥१७॥
इम०॥१८॥
इम०॥१९॥
इम०॥२०॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36