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श्रुतसागर
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जनवरी-२०१९ कर्ता परिचय
महोपाध्याय श्री जयसोम के शिष्य गणि श्री गुणविनय ने दमयन्तीकथाचम्पू टीका की प्रशस्ति में गुरुपरंपरा का परिचय दिया है तदनुसार श्री जिनमाणिक्यसूरिजी के पट्टधर गच्छनायक युगप्रधान पदधारक श्री जिनचन्द्रसूरिजी विद्यमान थे। उसी समय खरतरगच्छ की क्षेमशाखा के उपाध्याय प्रमोदमाणिक्य के शिष्य उपाध्याय जयसोमजी हुए।
प्रस्तुत कृति के कर्ता महोपाध्याय जयसोमजी की अन्य १४ जितनी कृतियाँ प्राप्त होती हैं। जयसोमजी महाराज के शिष्यों में उपाध्याय गुणविनयजी, विजयतिलकजी, सुयशकीर्ति आदि कई विद्वान शिष्य थे। इनमें उपाध्याय श्री गुणविनयजी सत्रहवीं शताब्दी के नामांकित विद्वान थे। श्री गुणविनयजी की ७० से अधिक कृतियाँ प्राप्त होती हैं। प्रति परिचय
प्रतिलेखक वाचक विमलकीर्ति खरतरगच्छीय उपाध्याय साधुकीर्ति के प्रशिष्य तथा वाचक विमलतिलक के शिष्य थे। ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह की पृष्ठसंख्या २०९ के आधार पर आपकी दीक्षा वि.१६५४ में हुई थी। वाचक पदवीयुक्त आपका स्वर्गवास सिन्धु देशस्थित कहिरोर में अनशनपूर्वक हुआ था। आपने सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मारुगुर्जर भाषा में गद्य और पद्य रचनाएँ कर साहित्य की अमूल्य सेवा की है।
उपलब्ध रचनाओं में यशोधर रास वि.१६६५, आवश्यक बालावबोध वि.१६७१, गणधर सार्धशतक टब्बा वि.१६८०, प्रतिक्रमणविधि स्तवन वि.१६९०, उपदेशभाषा टब्बा सहित २५ कृतियाँ प्रमुख हैं। आपके शिष्य विमलरत्न भी अच्छे साहित्यकार थे।
प्रत का लेखन वर्ष वि.सं.१६८४ है। प्रतिलेखक मारुगुर्जर भाषा के विद्वान होने से प्रस्तुत प्रति नं. ४९५५० में स्खलना प्रायः नहीं है। अक्षर सुन्दर और सुवाच्य हैं। प्रति की स्थिति प्रायः जीर्ण है। रक्तवर्णीय मसि से गाथा संख्या एवं ढालादि का निर्देश किया गया है। पडिमात्रा युक्त लिपि है तथा तीन पत्रों की प्रति के प्रत्येक पृष्ठ के मध्य में वापिका का चित्रांकन है और प्रथम पत्र पर वापिका का चित्रण इस प्रकार किया गया है कि मध्य में गज का चित्र नजर आता है एवं अंतिम पत्र पर अश्व का चित्र बनाया गया है।
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