Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 January-2019 सुख०॥७॥ सुख०॥८॥ सुख०॥९॥ सुख०॥१०॥ SHRUTSAGAR एहवां देव न मानीय रे, जु होइ अकल लिगार। ते किम भगतनि उद्धरइरे, जे धरइ नवा अवतार । देव जि लीइं नवां अवतार मुगति तणा जे अरथीआ रे, ते सुणउ एह विचार । देव ति कोई ज सेवीइ रे, जे तरीयु संसार । देव जे न पडइ संसार मल्लि जिणिंद वालउ मुझ मिल्युरे, अनंत सुख दातार। प्रह ऊठीनि जे नमइं रे, ते तरसी संसार नीलवरण तनु अति भलु रे, तेज तणो अंबार । दरसण द्यु प्रभु आपणुं रे, विनतडी अवधार। म्हारी वीनतडी अवधार ॥राग-धन्यासी॥ चिरं जयउ चिरंजयउ सयल मुनिनायको, श्रीतपगछर्नु एह राजा। श्रीविजयसेनसूरि परम भट्टारको, दिन दिन दीपता बहू दिवाजा प्रचुर पंडित तारा गण सारिसा, तेहमाहि चंदसमुप विराजइ । प्रवर पंडित चारित्रउदय गणि, भूरि भविकनि ए निवाजइ वेदसायकरसचंद संवछरो वरतीपुरमंडणो मल्लिदेवो। कीर्तिउदय थुण्यु सुरतरुसम गण्यु, मुगतिगामी तुम्हे नित्य सेवो ॥कलस॥ मई भगति आणी केवलनाणी, गायुं मल्लि जिणेसरो। मोहतिमिर वारण सुदिन कारण, उत्तम एह दिणेसरो। मनवांछित पूरइ दुःख चूरइ, कुगतिना भयना निरदलीइ। हीउं हरख भरीइं भवनिधि तरीइ, एवां साहिब जु मिलइ ॥ इति श्रीमल्लिदेव संस्तवं संपूर्णमिति ॥ चिरं०॥११॥ चिरं०॥१२॥ चिरं०॥१३॥ ॥१४॥ For Private and Personal Use Only

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