Book Title: Shrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 श्रुतसागर जनवरी-२०१९ प्रत परिचय प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा की एक मात्र प्रत क्र. ४०७८८ के आधार पर किया गया है। एक ही पन्ने की इस संपूर्ण प्रत में दो कृतियाँ हैं। दोनों ही कृतियाँ एक ही कर्ता की हैं और उनमें से 'मल्लिजिन स्तवन' कृति प्रथम क्रमांक पर है। प्रत की लिखावट सामान्य व सुवाच्य है, लेकिन अधिक मात्रा में पानी से विवर्ण होने के कारण अक्षरों की स्याही फैल गयी है अतः ध्यान से पढने पर पाठ ग्राह्य हो पाता है। प्रत की स्थिति मध्यम है। प्रत की लंबाई-चौडाई २६४११ है। पंक्ति संख्या १६ से १७ एवं प्रति पंक्ति अक्षर संख्या लगभग ५१ है। श्याम पार्श्वरेखाओं से युक्त एवं गेरु लाल रंग से अंकित विशेष पाठों वाली इस प्रत का समय वि.१८वीं होना संभव है। प्रत के अंत में प्रतिलेखन पुष्पिका न होने से लेखकादि की सूचनाएँ अप्राप्य हैं। वरतीपुरमंडन श्रीमल्लिजिन स्तवन O॥ सरस्वत्यै नमः॥ सुखसागरीया रे, तोनि वीनवं वारोवार । तोनि भेटवा हरख अपार, तारुं दरसण दि एक वार ॥ सुखसागरीया रे तोनि वीनकुंवारोवार कुंभ नरेसर कुंयरू रे, शुभ गुणरयण भंडार। त्रिभुवन तिलक समाणडउ रे, उ जयउ जगदाधार सुख०॥२॥ धन धन देवी प्रभावती रे, जस कुखि तुझ अवतार । कंभ(कुंभ) लंछण रुलियामणउ रे, तीन भुवन सिणगार सुख०॥३॥ देवपणु धन ताहरु रे, सयल जीव हितकार। एकमना आराहिउ रे, मुगति दीइ निरधार सुख०॥४॥ ज्ञान अनंत प्रभु ताहरुं रे, बल अनंत उदार । समर्यां संकट तुं दलइ रे, आपइ भवनु पार सुख०॥५॥ हरिहर ब्रह्मादिक घणारे, देव या नामधार । विषय कषाय विलादिया रे, खेलइ खेल हजार सुख०॥६॥ ॥१॥ For Private and Personal Use Only

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