Book Title: Shripal Charitram Author(s): Kirtiyashsuri Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल चरितम् ॥२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — तदनंतर भगवान अपने प्रथमशिष्य बड़े गच्छको धारनेवाले ऐसे गणधर गुणोंकरके गरिष्ठ श्रीगौतम मुनीन्द्रको राजग्रह नगरके लोगोंके लाभके अर्थ भेजते भए ॥ ११ ॥ सोलद्ध जिणाएसो, संपत्तो रायगिहपुरोज्जाणे । कइवय मुणि परियरिओ, गोयमसामी समोसरिओ १२ अर्थ — वह गौतमस्वामी तीर्थंकरकी आज्ञा पाकर राजग्रह नगर के उद्यानमें प्राप्त भए कितनेक मुनि हैं साथमें जिन्होंके ऐसे वहां समवसरे ॥ १२ ॥ तस्सागमणं सोउं, सयलो नरनाह पमुहपुरलोओ। नियनिय रिद्धि समेओ, समागओ झत्ति उज्जाणे ॥१३॥ अर्थ — श्रीगौतमस्वामीका आगमन सुनके सर्व राजा प्रमुख नगरके लोग अपनी अपनी ऋद्धिः सहित शीघ्र उद्यानमें आए ।। १३ ॥ पंचविहं अभिगमणं, काउं तिपयाहिणा उ दाऊण । पणमिय गोयमचलणे उवविट्ठो उचियभूमीए १४ | अर्थ - पांच प्रकारका अभिगमन सचित्त द्रव्यका वोसराणा १ अचित्त द्रव्यका नहीं वोसराणा २ उत्तरासन करना ३ अंजलि करना ४ और मन बचन कायाका एकत्व करना यह पांच अभिगमन करके और तीन प्रदक्षिणा देके गौतम स्वामीके चरणों में वंदना करके अपने अपने योग्य भूमिपर बैठे ॥ १४ ॥ | भयकंपि सजल जलहर, गंभीर सरेण कहिउ माढत्तो । धम्मसरूवं सम्मं, परोवयारिक्क तलिच्छो ॥१५॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीका सहितम्. ॥ २ ॥Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 334