Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ १॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जत्थुप्पन्नं सिरि वीरनाह, तित्थं जयंमि वित्थरियं । तं देतं सविसेसं, तित्थं भासंति गीयत्था ॥ ३ ॥ भाषाटीका अर्थ — जिस मगध देशमें श्रीमहावीरस्वामीका तीर्थ उत्पन्न भया और जगत् में विस्तार पाया उस देशको गीतार्थ विशेष करके तीर्थ कहते हैं ॥ ३ ॥ सहितम्. तत्थय मगहा देसे, रायगिनाम पुरवरं अस्थि । वेभार विउल गिरिवर, समलंकिय परिसरपएसं ॥ ४ ॥ अर्थ — उस मगधदेशमें राजगृह नामका प्रधान नगर है कैसा है नगर वैभारगिरि विपुलगिरि पर्वतोंसे आसपासका भाग शोभित है जिसका ऐसा ॥ ४ ॥ तत्थय सेणिय राओ, रज्जं पालेइ तिजय विरकाओ । वीर जिण चलण भत्तो, विहिअज्जिय तित्थयरगुत्तो ५ अर्थ — उस राजग्रह नगर में श्रेणिक नामका राजा राज्य पालता है कैसा है राजा तीन जगत्में प्रसिद्ध है और श्रीमहावीरस्वामीके चरणोंका भक्त है ॥ विधिसे उपार्जन किया है तीर्थंकर नाम कर्म जिसने ऐसा ॥ ५ ॥ जस्सत्थि पढमपत्ती, नंदानामेण जीइ वरपुत्तो । अभयकुमारो बहुगुणसारो चउबुद्धिभंडारो ॥ ६ ॥ अर्थ — जिस श्रेणिक राजाके पहली रानी नंदा नामकी है उसके प्रधान पुत्र अभयकुमार नामका बहुतगुणोंसे श्रेष्ठ है | और चार बुद्धिका भंडार है ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only ॥ १ ॥

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 334