Book Title: Shripal Charitram Author(s): Kirtiyashsuri Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ जिनदत्तसूरिपुस्तकोद्धारफंड-ग्रंथाङ्क २६ ॥ ॥श्री भाषाटीकासहितम् प्राकृत ॥ ॥श्रीपालचरित्रम् ॥ ASSASSISKOSHUA ॥ॐ अहं ॥ प्रणम्य परया भक्त्या, यंत्रं श्रीसिद्धिचक्रक, श्रीश्रीपालचरित्रस्य, व्याख्यानं लोकभाषया ॥१॥ क्रियते इति शेषः ॥ अरिहाइ नवपयाइं झाइत्ता हिययकमलममि । सिरि सिद्धचकमाहप्पमुत्तमं किंपि जंपेमि ॥१॥ __ अर्थ-श्रीअर्हतादिक नवपदोंको हृदय कमलमें ध्यायके उत्तम श्रीसिद्धचक्र यंत्रराजका माहात्म्य किंचित् कहता हूं ॥२॥ अस्थित्थ जम्बुद्दीवे, दाहिणभरहद्ध मज्झिमे खंडे। बहुधणधन्नसमिद्धो, मगहादेसो जगपसिद्धो॥२॥3 अर्थ-इस जम्बुद्वीपमें दक्षिण भरतार्द्धके मध्यमखंडमें बहुत धन धान्य करके समृद्ध जगतमें प्रसिद्ध मगध नामका देश है ॥२॥ SHASHASHSASSASSING श्रीपा.च.१ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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