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श्रीपाल - चरितम्
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जत्थुप्पन्नं सिरि वीरनाह, तित्थं जयंमि वित्थरियं । तं देतं सविसेसं, तित्थं भासंति गीयत्था ॥ ३ ॥ भाषाटीका अर्थ — जिस मगध देशमें श्रीमहावीरस्वामीका तीर्थ उत्पन्न भया और जगत् में विस्तार पाया उस देशको गीतार्थ विशेष करके तीर्थ कहते हैं ॥ ३ ॥
सहितम्.
तत्थय मगहा देसे, रायगिनाम पुरवरं अस्थि । वेभार विउल गिरिवर, समलंकिय परिसरपएसं ॥ ४ ॥
अर्थ — उस मगधदेशमें राजगृह नामका प्रधान नगर है कैसा है नगर वैभारगिरि विपुलगिरि पर्वतोंसे आसपासका भाग शोभित है जिसका ऐसा ॥ ४ ॥
तत्थय सेणिय राओ, रज्जं पालेइ तिजय विरकाओ । वीर जिण चलण भत्तो, विहिअज्जिय तित्थयरगुत्तो ५
अर्थ — उस राजग्रह नगर में श्रेणिक नामका राजा राज्य पालता है कैसा है राजा तीन जगत्में प्रसिद्ध है और श्रीमहावीरस्वामीके चरणोंका भक्त है ॥ विधिसे उपार्जन किया है तीर्थंकर नाम कर्म जिसने ऐसा ॥ ५ ॥ जस्सत्थि पढमपत्ती, नंदानामेण जीइ वरपुत्तो । अभयकुमारो बहुगुणसारो चउबुद्धिभंडारो ॥ ६ ॥ अर्थ — जिस श्रेणिक राजाके पहली रानी नंदा नामकी है उसके प्रधान पुत्र अभयकुमार नामका बहुतगुणोंसे श्रेष्ठ है | और चार बुद्धिका भंडार है ॥ ६ ॥
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