Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 623
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४४ साधुपद सझ्झाय. प्रथम गाथारे अंते कह्यो छे, एहिज आतमवित्त वित्त शब्दं आत्मद्रव्य नाम आत्मारो धन दूंजी गाथारे आदें पर्याय इसो पद धर्यों छे तेथी प्रथम द्रव्यरो लक्षण लिखे पछे पर्यायलक्षण लिखसुं. किम द्रव्य विना पर्यायरो असंभव, ते माटे द्रव्यलक्षणमाह गुणपर्यायवत्वं अन्यत्वाम् । इण कहिणे शुं ज्ञानपदार्थ द्रव्य छे. गुण कांइ ? तत्र गुणलक्षणमाह । सहजातित्वं गुणत्वम् इतिगुणलक्षणम्॥ जिम स्वर्ण द्रव्यमें पीतता गुण सहजातिपणो छ तिमहीज ज्ञानद्रव्य प्रगट हुवा छतां घटपटादि पदार्थनो जाणपणो हुओ ते गुण कहीजे, तेपिण ज्ञानथकी मिल्यो हुवो छ तिमहीज द्रव्यने विषे पर्याय रह्या छे. पर्याय लक्षणमाह । पूर्वपूर्वाकार परित्यागोत्तरोत्तरांकार परिस्फूर्ति मंतोहि विशेषाः अपरमान पर्यायाः ए पर्याय रा दोय नाम छे, जिम स्वर्ण द्रव्य तिणमें पीतता लक्षण, सर्व धातुथी भारी ए पिण स्वर्ण द्रव्यनोहीज गुण लक्षण ति स्वर्णना अनेक आभूषण करणा ते पर्याय तिमहीज जगतने विषे यावंतः परिच्छेद्याः पर्यायास्तावंतः परिच्छिदिकास्तस्य केवलज्ञानस्य स्वभावा वेदितव्याः स्वभावाश्च पर्याया इति । यावंतो नाम जितरा, परिच्छेद्याः नाम परिछेदन नाम एकेक लक्षणे करीने भिन्न करिवा योग्य नाम परिमाण करवा योग्य जे अनंता घटपटादि पदार्थ एतले ज्ञानथकी जगत्में घटपटादि अनंता पदार्थ तेऊ एक एकने भिन्न भिन्न लक्षणे केवलज्ञानथी ओलखवा जे ते पदार्थ परिछेद्य कहीजे, नाम पदार्थ भिन्न लक्षणे ओलखवा योग्य छे. हिवे परिछेद्यनो १ आत्मानो २ बीजी गाथाने ३ एहवो ४ लखीने. For Private And Personal Use Only

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