Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 639
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री बाहुजिन स्तवन स्वोपज्ञटवासह . * बाहुजिणंद दयामयी, वर्तमान भगवान, प्रभुजी; महाविदे विचरता, केवल ज्ञान निधान, प्रभुजी बाहु० ॥ १ ॥ ॐ हवे वीजा विहरमान पश्चिम जंबुद्वीपनेविषे वच्छविजय सूसिमा नगरी, सुग्रीव राजा, विजयामाता पुत्र, मोहनी राणीना भरतार, हिरण लांच्छन, श्री बाहु स्वामीने जे दया नीपनी छे ते दिखाडे छे, अने प्रभुने स्तवे छे. श्री बाहु स्वामी दयामयी छे. इहां यथार्थ ज्ञान करवाने दयानुं तथा अहिंसा स्वरूप कहीए छीए. जे कोइने हणवो नहिं ते अहिंसा कहीए. ते विभावपरिणतिए परिणमीने जे आत्मगुणनो हणवो ते भावहिंसा. अने गुणी तथा ज्ञानादिक गुणने अनुयायी वीर्य उपयोग करतां आत्मगुण हणायज नहिं. ते भाव अहिंसा तथा जे आत्माना ज्ञानादिक गुण आस्रवथी हणता जाणीने ते आस्रवथी टालीने आत्माने संवरने विषे परिणमनुं ते भावदया जाणवी तथा कोइ परजीवना दश प्राण न हणवा ते द्रव्य अहिंसा. अने कोइना द्रव्य प्राण हणाता उगारखा ते द्रव्यदया, एनुं स्वरूप विशेषा * आ स्तवन श्रीमद् देवचंद्रजीए रचेलं होई तेओना समयनी गुर्जर भाषा प्रमाणेन अमे प्रसिद्ध करीए छीए. अने ते उपरनो अर्थ पण ओज भलो छे. For Private And Personal Use Only

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