Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 659
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०८० श्रीमद् देवचंद्रजीना लखेला पत्र. परमात्मा परमैश्वर्य्यमय तेहनी सेवना जे प्रभु बहुमान भासन रमणपर्णे करवा वर्तमानकालें स्वरूप निर्द्धार भासनपिण दुर्लभ छें, तो स्वरूपनो रमण ते तो श्रेणिप्रतिपन्न जीवनें हुवें संपूर्ण स्वरूपानंदी वीतरागनी भक्तिनें अवलंबनें रहवोजी. श्रीआचारांगें लोकसाराध्ययनें आत्मस्वरूपावलंबी जीव ते साधक छें, बीजा साधक नथी, इम कह्यो छे. ते माटे शुद्ध साध्यरुचि अने यथापणे वस्तु परमार्थज्ञानी कर्मक्षय करवानो अर्थों निस्संग आत्मानो परिणमन ते धर्म तेहना प्राग्भावना अर्थी ते साधक जीव परमसिद्धतानें वरें, ए रीते प्रतीत राखवीजी. आज्ञा श्री तीर्थंकर देवनी ते प्रमाण, साधन रसी गुणी बहुमान स्वतत्त्व पूर्णताना रसिकपणे वरतज्यो ए तत्त्व छें जी । 32*202*€£ समाप्त. 99*99*92 # Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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