Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 655
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir marnamaAAAAAAh १०७६ श्रीमद् देवचंद्रजीना लखेला पत्र. m mmmm. होइं, असाधाण कारण तो अविरति कषाय रागादिक हुई अने निमित्त कारण तो काल स्वभाव निमित्तादिक योग वंचकादि बहुधा हुई, तथा द्रव्यथी तथा भावयी ए कारणनी भिन्नता थाय तेंवारें अनवस्था दोष उपजे, ते मार्टि जीहां अनुपचरितसद्भूत व्यवहारलोप जिहां थाइं ते सर्वभावथी उपादान जाणवू. ए लक्षणमावई साध्यु अने जिहांथी उपचरितसद्भूत व्यवहार ते निमित्त लक्षणसांधीइं। अने जिहां उपचरित असद्भूतव्यवहार ते निमित्त लक्षण साधीइं, तिहां शुद्धअशुद्ध तो जोवा पडई, इम सघले विचारी लिजीई, ए प्रश्ननो उत्तर समुदायमात्र लिख्यो छे, ए गहनार्थ छे, बहुश्रुतपूछवा अने तुम्हें वली लिख्युं जे ३ अहिंसा जे जे गुणस्थानक माफक जिहां होई तिहां हिंसा हुई किंवा न हुइ, ते तो हिंसा हुई पणि ते निरवद्यरूप छे. आयतिकाले निर्जरा निमित्तं ज थाई अने दोषी(ने?) तुं शुभाश्रव रूप होई। ते सावध निवद्य कहीइं छिं ते माटिं हिंसा न कहई सावद्यभाषाई कहीइं अ..पितुं जे दीसई ते प्रसंगमात्र छे, ते माटिं व्यवहारे इंम कहीइं निश्चयथी अहिंसा छे, ते जाणवू, तथा पंडितवीर्य उपादान कारण तेहनो क्षयोपशम ते असाधारणकारण अने शुद्ध व्यवहारनई गुणोपेत योग ते निमित्तकारण ए पणि लक्षण सामान्यमात्रई सघले लेवां, तथा अनुबंध अहिंसा आश्री लिख्यु ते जाणवू, तेहगें तो द्रव्यथी अनुबंध अहिंसा, ग्रंथी भेदई उपशम समकितदृष्टिने भावथी क्षायिक समकितीने ते संवर रूप शुद्ध आत्मिक भावमां-द्रव्यथी हेतु अहिंसा श्री प्रशस्त ठामें निराशंसपणइं हेतु जोडे तिहां भावथी हेतु, अहिंसा अप्रमत्तगुणठाणादिके द्रव्यभाव शब्द ते देश सर्व जाणवा. For Private And Personal Use Only

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