Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 641
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६२ श्री बाहुजिन स्तवन. तो केवलीने किम ढोवे ? इया माटे जे भावदया आत्मगुणनो रखवालवो तेना धणी जे उत्तम गुणी निग्रंथादिक तेहनो ए व्यवहार कहेतां प्रवर्तन छे, जे जेमां जेहवा गुण हुवे तेहनो आचरण प्रवर्तन पिण तेहबोज हवे, जे पोते साहुकार हवे तेहनो देश चाली पिण समी हवे. जेहनो लांठीयो हवे तेहनो देश चाली पिण वांकी दुवे, ए दृष्टांते जे परमेश्वर भावदया परिणामे परणम्या छे तेहनो विहार पण छकायने राखवानोज हवे इम जाणवो. ए द्रव्य दयारूप प्रथम भेद को. रूपअनुत्तर देवथी, अनंत गुणो अभिराम प्रभुजी; जोतां पिण जग जीवने, न वधे विषय विराम, प्रभुजी. बाहु० ॥ ३ ॥ बीजा सरागी जीवनो रूप हुवे ते घणा जीवने विकारनो तथा संसारी रागादिकनो हेतु थाय तिवारे ते जीवना आत्म गुण हणाये, तिवारे ते रूप हिंसानो हेतु थयो, अने श्री प्रभुजीनो रूप ते अनुत्तर विमानना देवताथी अनंतगुणो अभिराम कहेतां मनोहर छे. एहवो रूप छे. पिण जगत्रयना जीवने जोतां धर्म राग उपजे पिण विषयनो विकार न उपजे इतले जे रूपनी मनोहरता ते पिण दयानो कारण जाणवो. ए बीजो दयापणो छे. ३. कर्म उदय जिनराजनो, भविजन धर्म सहाय, प्रभुजी; नामादिक संभारतां, मिथ्या दोष विलाय, प्रभुजी बाहु० ॥ ४ ॥ ३ For Private And Personal Use Only

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