Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 622
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org साधुपद सझाय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४३ एकविराजनी योजनानो एज सुभाव छे तेज वातने गटरपटर आगेंनी पाछे, पाळेंनी आगे हांकतो चाल्यो जाय ते तमे पोते विचार लेज्यो. संबंध विरुद्ध अंगोपंगभंग कविता वारवार एकपद गुथाणो ते पुनरुक्ति पण कविता ते एहीज सिझायमें तमेही जोइ लेज्यो, एक निजपद दश जागा गुंथ्यो छे ते गिलेज्यो, इकलो मूजने दूषण मत देज्यो, बीजु ऐहुनो छटक लिखत सप्तन्याश्रयी सप्तभंग्याश्रयी चुस्त छे, स्वरूपना कथननी योजना तेमां तो गटरपटरछे, ए विना बीजी सहिज छूटक योजना सटक छे, योजना करवी ए पिणें विद्या न्यारी छे, कौमुदी कर्तायें शिष्ययी आद्य लोक करायो आपथी न थयो. वली ए बात खुली न लिखुं तो ए लिखत वांचणवालो मूर्खशेखर जाणे ए कारणे लिखुं गुजरातमां ए कहिवत छे आनंदघन टंकशालि, जिनराजसरिबाबा तो अबव्यवचनी उ० यशोविजय दानरटुनरिया पोते थाप्यो तेज उथाप्यो उ० देवचंद्रxxजीने एकपूर्वनुं ज्ञान हतुं तेथी गटरपटरीया. मोहनविजयपन्यास ते लटकाला, मुजने आगळ अर्थ लिखबुं छे ते अक्षर प्रमाणे अर्थ लिखिश, किहां सरीखो अर्थ दीसे ते म्हारो दूषण न काढइयो, अक्षर विरुद्ध अर्थे मारो दूषण सही इहां सर्व गाथा लिखुं. हिवे दूंजी गाथारो अर्थ लिखुं. पर्याय अनंता निज कारणपर्णे रे, वरते ते गुणशुद्ध; पर्यायगुण परिणामें कर्तृतारे, ते निज धर्म प्रसिद्ध ॥ सा० २ ॥ १ जग्याए २ गणी ३ एमनो ४ पण १ बीजी ६ गाथानो For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670