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સર્વ મુમુક્ષુ સાધકો અનંત ગુણના ભંડાર એવા અનંતનાથ પ્રભુનું સ્મરણ, દર્શન, વંદન, પૂજન, સ્તવન અને ધ્યાન વગેરે નિરંતર કરવા દ્વારા અનુક્રમે પરમ આનંદ પ્રાપ્ત કરે છે.
चौदहवें स्तवन का सार...
अरिहन्त परमात्मा के नामादि चार निक्षेप भव्य जीवों के लिए महान उपकारक बनते हैं। उनमें से स्थापना निक्षेप की विशेषता का वर्णन इस स्तवन में किया गया है ।
(१) इस भीषण भवारण्य में जन्म-जरा-मरणरूप या आधि-व्याधि-उपाधिरूप त्रिविध ताप से आकुल-व्याकुल बने हुए जीवों को परमात्मा की शान्तरस-परिपूर्ण मुद्रा का दर्शन मेघ-वृष्टि के समान शीतलता प्रदान करता है ।
(२) गारुडी मंत्र से जैसे सर्पादि का विष दूर हो जाता है वैसे ही प्रभु मूर्ति के दर्शन से मिथ्यात्व, अविरति और विषय-कषायादि के भयंकर जहर नष्ट हो जाते हैं ।
(३) आत्म- सम्पत्ति प्रदान करनेवाली होने से प्रभुमूर्ति विन्तामणिरत्न के समान है और परमानन्दरस से परिपूर्ण होने से मानो वह शिवसुख का धाम ही है ।
(४) श्रद्धायोग, ज्ञानयोग और चारित्रयोग को सिद्ध करने के लिए प्रभुमूर्ति सर्वोत्तम साधन है अर्थात् प्रभुमूर्ति के आलंबन से सर्व अध्यात्मादि योगों की सिद्धि होती है और उससे अनादिकाल से बंधता हुआ अशुभ कर्मों का प्रवाह रुक जाता है तथा आत्मस्वभाव में रमणता प्राप्त होती है ।
(५) परमात्मा की शान्त-सुधारस से पूर्ण मनोहर मूर्ति के दर्शन से साधक का हृदय उल्लसित बनता है और अमृतरस के पान तुल्य मधुर रस के आस्वादन का अनुभव होता है ।
इस प्रकार जिस साधक को परमात्मा की मूर्ति अत्यन्त मीठी-मधुर लगती है और जो अत्यन्त बहुमानपूर्वक प्रभु के गुणों का स्मरण एवं गान करता है उसे भव- भ्रमण का भय नहीं रहता ।
सर्व मुमुक्षु साधक अनन्त गुण के भंडार ऐसे अनन्तनाथ प्रभु के स्मरण, दर्शन, वन्दन, पूजन, स्तवन और ध्यान आदि निरन्तर करने से क्रमश: परम आनन्द को प्राप्त करते हैं ।
સ્તવનમાં આપેલા ચિત્રોનું વિવરણ
૧૪(૧) શ્રી અનંતનાથ ભગવાન
१४ ( २ ) श्री अनंतनाथ भगवान (लातभर मुंबई)
૧૪(૩) શ્રી લોઢવા પાર્શ્વનાથ ભગવાન
૧૪(૪) શ્રી આદિનાથ ભગવાન (વાલકેશ્વર-બાબુલાલ અમીચંદ જૈન મંદિર)
૧૪(૫)શ્રી શાંતિનાથ ભગવાન
૧૪૬) શ્રી નાકોડા પાર્શ્વનાથ
૧૪૬૭) શ્રી અજારા પાર્શ્વનાથ
આધિ-વ્યાધિ અને ઉપાધિના ત્રિવિધ તાપથી વ્યાકુલ જીવોને પરમાત્માની મૂર્તિનું દર્શન મેઘવૃષ્ટિ શીતળતા આપે છે.
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