Book Title: Shrimad Devchandji Krut Chovisi
Author(s): Premal Kapadia
Publisher: Harshadrai Heritage

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Page 478
________________ HUSHALA वर्धमान जिनवर तणो, शासन अति सुखकारोजी चौविह संघ बिराजतो, दुःषम काल आधारोजी॥ चोवीशे.॥३॥ अर्थ : तथा, अभी श्री वर्धमान महावीरस्वामी का शासन अतीव सुखकारी है । इस शासन में जो आया वह जीव संसार से पार होता है । तथा, दुषम काल-पाँचवे आरे में भव्य जीव के लिए आधारभूत चतुर्विध संघ बिराजता है । वर्तमानकाल में नवतत्त्व-षड्द्रव्य की पहचान होती है जिससे मिथ्यात्व-असंयम त्रस्त होते हैं वह उपकार श्री वीर प्रभु के शासन का है । श्री वीर व उनके आगम आधार हैं । उनका उपकार है। સ્વો. બાલાવબોધ : તથા, હમણાં શ્રી વર્તમાન મહાવીર સ્વામીનું શાસન અત્યંત સુખનું કારક છે, એ શાસનમાંહે જે પેઠા તે જીવ સંસારનો પાર પામે. તથા, દુષમ કાલ-પાંચમા આરા મધ્યે ભવ્ય જીવને આધારભૂત ચતુર્વિધ સંધ બિરાજે છે. જે વર્તમાન કાલે નવ-તત્ત્વ, પ-દ્રવ્યની ઓલખાણ થાય, મિથ્યાત્વ-અસંયમનો જેથી ત્રાસ આવે તે ઉપગાર શ્રી વીર પ્રભુના શાસનનો છે. શ્રી વીર-તેહના આગમ आधार छ, तेनो ५२ छे. ।। इति तृतीयगाथार्थः ।। ३ ।। | जिन सेवनथी ज्ञानता, रूहे हिलाहित बोधोजी अहित त्याग हित आदरे, संयम हपनी शोधोजी चोवीशे.॥४॥ अर्थ : इस जिनसेवना का यह फल श्री विशेषावश्यक के अनुसार कहते हैं कि जिस, श्री वीतराग-उपदिष्ट सूत्र को सुनने से जानकारी (ज्ञान) बढती है, उस ज्ञान से हिताहित का बोध होता है । तदनन्तर अहित का त्याग तथा हित-तत्त्वसाधन का आदर करने से संयम-तप की शुद्धि होती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only ४७४ www.jainelibrary.org

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