Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira Part 1
Author(s): Ratnaprabhvijay, D P Thaker
Publisher: Parimal Publication

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Page 434
________________ 90 Preaching of T thankara Bhagavān Sri Śrłyāmsa Nath. 41. After having thus adored the Jinesvara Bhagavāna for some time, Tripristba Vasudeva took his seat at an appropriate place. Tirthankara Bhagavāna Śréyāṁsa Năth, then, commenced preaching with a voice that could be heard as far as one yojana: Preaching. जहा-मोमो देवाणुप्पिया ? कहकहवि चिरं संसारकंतारमणुपरियमाणेहिं तुम्हे हिं पाविओ एस मणुयजम्मो, जायं अविकल पंचिदिवसणं, संपत्ता निक्कलंककुलारोगाइया सामग्गी, समुल्लसिया सदम्मबुद्धी का दुगुच्छह मिच्छत्ताविरइसंगं समीहह संमत्तनाणचरित्तवित्तं पेच्छह मायपर पाणिगणदुइविवागं अणुचिंतह खणदिनहसरूवयै सध्यभावाणं विमंसह पुणो दुल्लहचणं आरियखेचाइलामस्स, अनं च तुच्छेहियमुहलवमेतलालसा कीस वसह निस्संका ? । किं तुम्ह कयंतेणं निम्भयपत्तं सयं लिहियं ? ॥१॥ किंवा केणवि अजरामरत्तणं तुम्ह दावियं ? अहवा । मरणाइदुःक्खरहियं ठाणं वा कत्यविय दिटुं ? ॥२॥ अहवा सासयभावत्तकारणं किं रसायणं लद्धं ? । जेणूमुगत्तठाणेऽवि गाढमंदायरा होई ॥३॥ मो मो देवाणुप्पिया ! सद्धम्मोवजणे समुज्जमहा । परिहरह पावयित्तेहिं संगतिं दुक्खसयजणणि ॥ ४ ॥ पदिवजह निरवजं पव्वलं देसविरइमहवावि । निमुणह पसिद्धसिद्धंतदेसणं मोहनिम्महणिं ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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