Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira Part 1
Author(s): Ratnaprabhvijay, D P Thaker
Publisher: Parimal Publication

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Page 593
________________ 249 नाणाईणं उदयारपमुहविणपंधि पामिनि । भइयारपरंपरयं वजंतो विउणयपीए ॥१०॥ पडिळेहमापमयपहारस्सयविहीन विविहार। सदम्मपदललो खलियं निषषि रखतो ॥११॥ सीछे पिंडगमपमिइदोसविरमा वएम पंचवि । पाणबहाईपस य विसोइयंतो य माकि ॥ १२॥ पइसमय संवेनाइमावणालाममावणुगो । ससरीरेऽविहु निश्चं ममत्तबुद्धि अकुणमाणों ॥१३॥ बमम्मतररूवं पारसमेयंपि घोरतवकम्म । भनिदियनियसची आयरमाणो य पइदिवस ॥१४॥ पम्मोधनारिसाहूण वस्ववलपमोकलवारले । देवो कोहाई नि चाय कुतो च ॥१५॥ आयरिओमायलवस्सिरसाहस्मियात्म सेहा । इलामणगिलाणसंधे यापच्चमि वो ॥१६॥ एएसिपि तहाविहावयवसजायदुत्वचिंताण । ओसहदाणाईहिं समाहिभावं च जणमाणो ॥१७॥ अक्सरपयगाहसिलीगमैत्तय सब्वया अधुवा । अहिगयमुत्तत्योऽबिहु मुयाणुरागेण पढमाणो ॥ १८ ॥ भत्तिं तह बहुमाष्ण तविठ्ठल्याण सम्मभावपर्व । विहिनहणं चिय निचं मुखस्स सम्म पयासिंगो ॥ १९॥ भब्वाण धम्मकहणेण पइदिणं पवयणुभई परमं । सियवायसाहणेण य कुणमाणो मुद्धचित्तणं ॥ २० ॥ 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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