Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 16
________________ धवलाका गणितशास्त्र ( ३ ) अंकगणितके सत्र भाग जिनमें अनुपात, विनिमय और व्याजके नियम भी सम्मिलित हैं, तथा सरल और वर्ग समीकरण, और सरल कुट्टक ( indeterminate equations ) की प्रक्रिया तकका बीजगणित भी है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या आर्यभटने अपना गणितज्ञान विदेश से ग्रहण किया, अथवा जो भी कुछ सामग्री आर्यभटीय में अन्तर्दित है वह Raat मौलिक सम्पत्ति है ? आर्यभट लिखते हैं "ब्रह्म, पृथ्वी, चंद्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शनि और नक्षत्रों को नमस्कार करके आर्यभट उस ज्ञानका वर्णन करता है जिसका कि यहां कुसुमपुरमें आदर है । " इससे पता चलता है कि उसने विदेश से कुछ ग्रहण नहीं किया । दूसरे देशों के गणितशास्त्र के इतिहास के अध्ययन से भी यही अनुमान होता है, क्योंकि आर्यभटीय गणित संसारके किसी भी देशके तत्कालीन गणितसे बहुत आगे बढ़ा हुआ था । विदेशले ग्रहण करनेकी संभावनाको इस प्रकार दूर कर देने पर प्रश्न उपस्थित होता है कि आर्यभटसे पूर्वकालीन गणितशास्त्र संबंधी कोई ग्रंथ उपलब्ध क्यों नहीं है ! इस शंकाका निवारण सरल है । दाशमिकक्रमका आविष्कार ईसवी सन् के प्रारंभ कालके लगभग किसी समय हुआ था । इसे सामान्य प्रचार में आनेके लिये चार पांच शताब्दियां लग गई होंगी । दाशमिकक्रमका प्रयोग करनेवाला आर्यभटका ग्रंथ ही सर्वप्रथम अच्छा ग्रंथ प्रतीत होता है । आर्यभटके ग्रंथसे पूर्व के ग्रंथों में या तो पुरानी संख्यापद्धतिका प्रयोग था, अथवा, वे समयकी कसौटी पर ठीक उतरने लायक अच्छे नहीं थे । गणितको दृष्टिसे आर्यभटकी विस्तृत ख्यातिका कारण, मेरे मतानुसार, बहुतायत से यही था कि उन्होंने ही सर्वप्रथम एक अच्छा ग्रन्थ रचा, जिसमें दाशमिकक्रमका प्रयोग किया गया था । आर्यभटके ही कारण पुरानी पुस्तकें अप्रचलित और विलीन हो गई । इससे साफ पता चल जाता है कि सन् ४९९ के पश्चात् लिखी हुई तो हमें इतनी पुस्तकें मिलती हैं, किन्तु उसके पूर्व के कोई ग्रन्थ उपलब्ध महीं हैं । विकास और उन्नतिका इस प्रकार सन् ५०० ईसवी से पूर्व के भारतीय गणितशास्त्र के चित्रण करनेके लिये वास्तव में कोई साधन हमारे पास नहीं है । ऐसी अवस्था में आर्यभटसे पूर्व के भारतीय गणितज्ञानका बोध करानेवाले ग्रंथों की खोज करना एक विशेष महत्व - पूर्ण कार्य हो जाता है । गणितशास्त्र संबंधी ग्रन्थोंके नष्ट हो जानेके कारण सन् ५०० के पूर्वकालीन भारतीय गणितशास्त्र के इतिहासका पुनः निर्माण करनेके लिये हमें हिदुओं, बौद्धों और.. १ ब्रम्हकुश शिबुधभृगुरविकुजगुरु कोणभगणान्नमस्कृत्य । आर्यमस्त्विह निगदति कुसुमपुरेऽभ्यर्चितं ज्ञानम् ॥ आर्यभटीय. २, १. ब्रह्मभूमिनक्षत्रगणान्नमस्कृत्य कुसुमपुरे कुसुमपुराख्येऽस्मिन्देशे अभ्यर्चितं ज्ञानं कुसुमपुरवासिभिः पूजितं प्रहगतिज्ञानसाधनभूतं तन्त्रमार्यभटो निगदति । ( परमेश्वराचार्यकृत टीका ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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