Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 274
________________ // 48 // नवकारसहिअ-पोरिसी, पुरिमड्डेगासणेगठाणे य / आयंबिल-अब्भतढे चरिमे अभिग्गहे य विगई दो नवकार छ पोरसी, सग पूरिमड्डे इगासणे अट्ठ। सत्तेगठाणे अंबिल-अट्ठ पण चउत्थे छ पाणे // 49 // चउ चरिमें चउभिग्गहे, पण पावरणे नवट्ठ नीवीए / आगारूक्खितविवेग, मुत्तु दव्वविगइनीयमिट्ठ // 50 // उत्तम चरम सरीरा, सुर नेरइआ असंखनरतिरिआ / हुंति निरुवक्कमाओ, दुहा वि सेसा मुणेयव्वा // 51 // तित्थयर देवनिरयाऊ,-उअंच तिसु तिसु गइसु बोधव्वं / अवसेसा पयडिओ, हुंति सव्वासु (चेव) गइसु // 52 // मोत्तुण आऊअं खलु, दंसणमोहं चरित्तमोहं च / सेसाणं पयडीणं, उत्तरविहिसंकमों भणिओ अणदंसनपुंसित्थि, वेयछक्कं च पुरीसवेयं च / / दो दो एगंतरिए, सरिसे सरिसं उवसमेई . // 54 // अण मिच्छ मीस सम्मं, तिआउ इग. विगल थिणतिगुज्जोयं / तिरि-निरय-थावरदुर्ग, साहरणायव अड नपुंसित्थि // 55 // छग पुम संजलणा दो, निद्दा विग्घावरणखये नाणी। सजोगीसु पणनऊइ, संत्तं तं खवइ चरमगुणे // 56 // सव्वे पुव्वकयाणं, कम्माणं पावए फलविवागं'। अवराहेसु गुणेसु अ, निमित्तमित्तं परो होइ // 57 // वय-समिई-गुत्तीओ, सीलतवं जिणवरेहि पन्नत्तं / कुव्वंतो वि. अभव्वो, अन्नाणी मिच्छदिट्ठीओ // 58 // संसारसागरम्मि णं, परिभमंतेहिं सव्वजीवहिं। गहियाणि य मुक्काणि य, अणंतसो दव्वलिंगाई // 59 // 265

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